सबकुछ जाने सबकुछ समझे
पागल ये फिर भी धुन है
औचक टूट गए सपनों की
उचटी आँखों की धुन है |
इस धुन की ना जीभ सलामत
ना इस धुन के होठ सलामत
लँगड़े, बहरे, अंधे मन की
व्याकुल ये कैसी धुन है |
खेल-खिलौने टूटे-फूटे
भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े
अत्तल-पत्तल बाँह दबाए
खोले-बाँधे की धुन है |
क्या खोया-पाना, ना पाना
अता-पता न कोई ठिकाना
भरे शहर की अटरी-पटरी
पर गिरती-पड़ती धुन है |
फूटा लोटा, टूटी डोरी
भठे कुएँ पर खड़ा बटोही
बेसुध कंकड़-पत्थर भरती
ये कैसी प्यासी धुन है |
किए-धरे का लेखा-जोखा
झाड़ों ने कब तौला-देखा
काँटों में घायल पंखों की
ज्यों फड़फड़ करती धुन है |
ऐसा होता, वैसा होता
तो आज समय कैसा होता
बीती बातों को धुनने की
बेमतलब गुनती धुन है |
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Comment
कथ्य के भाव चिर सत्य को समेटे हुए निर्गुनिया शैली में मुखर हैं आदरणीय. इन इंगितों में जो सनातन आश्वस्ति है उसके अनुसार अनुभूति का ही महत्व हुआ करता है, तार्किकता का कोई स्थान नहीं है. इसी भावभूमि के संबल पर शताब्दियों से भूमिपूत्र दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी ठहाके लगाते जी जाया करते थे. नैराश्य को नकारते हुए जीने की ताकत हुआ करती थी यह भावभूमि. आज प्रासंगिक हो गये कई तथाकथित विन्दुओं के कारण नैराश्य हावी हो चला है. इस परिप्रेक्ष्य में आपका यह गीत ठंढी हवा के झोंके की तरह आया है. हार्दिक बधाई..
शिल्प के स्तर पर आदरणीय तनिकऔर ध्यान दिया जाना बनता था. इस पहलू पर आप अवश्य संवेदनशील होंगे, विश्वास है.
’भाव प्रस्तुतीकरण आवश्यक है, न कि क्लिष्ट प्रतीत होता काव्य-शिल्प’ आदि जैसी अति उत्साही उद्घषणाओं की निर्मूलता को आपका विवेकी मन अवश्य समझता होगा, आदरणीय.
शुभ-शुभ
.
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
धुन शायद होती ही ऐसी है, कहीं कोई परवाह नही. बहुत सुंदर, बधाई आपको आदरणीय संतलाल जी
बहुत सुन्दर मनमुग्ध करता गीत ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० संतलाल करुण जी
आदरणीय श्री संतलाल जी, आपकी कविता के साथ श्री गोपाल नारायण की छोटी कविता भी सुन्दर लगी!
करुण जी
धुन ही होती है धुन जैसी
धुन में बेसुध तन मन है I
धुन की धुन मे सब मतवाले
धुन ही कवि का जीवन है II
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