१.
देश की शान है अपनी हिंदी
फिर भी हल्कान है अपनी हिंदी
एक डोरी से जुड़ जाए भारत
एक अभियान है अपनी हिंदी
घर में अपने ही होकर पराई
आज हैरान है अपनी हिंदी
अपना सिर क्यूं झुके जग में यारों
अपना अभिमान है अपनी हिंदी
सारी दुनिया में फहराया परचम
हिन्द की आन है अपनी हिंदी
हिंदी से हैं सभी हिन्दवासी
अपनी पहचान है अपनी हिंदी
जितना सीधा सरल मन है अपना
उतनी आसान है अपनी हिंदी
शारदा माँ तेरे भक्त हैं हम
तेरा वरदान है अपनी हिंदी
कितना ‘खुरशीद’ छाया अँधेरा
इक समाधान है अपनी हिंदी
२.
भारत माँ की राजदुलारी हिंदी
सबसे न्यारी सबको प्यारी हिंदी
ज्ञान दिया है तूने हमको कितना
हम सब हैं तेरे आभारी हिंदी
उत्तर-दक्षिण का झगड़ा है झूठा
चहुँदिस छाई आज हमारी हिंदी
अवधी पूर्वी भोज-मैथिलि उर्दू
रंग बिरंगी इक फुलवारी हिंदी
खेल सियासत ने खेला है कैसा
अपने ही घर में दुखियारी हिंदी
विजय पताका सारे जग में फहरा
अपने ही घर में क्यूं हारी हिंदी
सूर कबीरा तुलसी मीरा दादू
तिरे भक्त रसखान बिहारी हिंदी
पन्त निराला गुप्त महादेवी ने
गीत-काव्य से ख़ूब निखारी हिंदी
अंग्रेजीदां बाबू हर दफ़्तर में
छाँट रहे हैं इक सरकारी हिंदी
कंठ हार है देवी तू जन जन का
मात शारदा की अवतारी हिंदी
ग़ज़ल-सुमन ‘खुरशीद’ चढ़ाता है नित
तेरा सुत तुझ पर बलिहारी हिंदी
....
3.
मेरी हिंदी किसी भाषा से हरगिज कम नहीं है
मिटादे हिन्द से हिंदी किसी में दम नहीं है
हमारी आन है पहिचान है भाषा हमारी
अगर हिंदी नहीं है तो समझ लो हम नहीं है
सितम्बर के महीने में इसे क्यूं पूजते हो
अरे हिंदी है दिनचर्या कोई मौसम नहीं है
स्वभाषा के बिना कैसे तरक्की देश की हो
सधेंगे सुर भला कैसे अगर सरगम नहीं है
डराते हो हमें इंग्लिश दिखाकर साहिबों क्यूं
य’ भाषा ही तो है हज़रात कोई बम नहीं है
य’ नस्ले-नौ हुई गुम किस बियाबाँ में ज़बाँ के
कोई बरगद कोई पीपल कोई शीशम नहीं है
सियासत ने रचे झगड़े तमिल के और हिंदी के
ज़बाँ कोई मुहब्बत के बिना सालिम नहीं है
ग़ज़ल हिंदी ग़ज़ल उर्दू समझ का फेर है बस
कहो गंगोजमन से पाक क्या संगम नहीं है
सिखाई आपने ‘खुरशीद’ जी भाषा निराली
गगन पर आपके रहते कहीं पर तम नहीं है
ग़ज़ले मौलिक व अप्रकाशित हैं
‘खुरशीद’ खैराड़ी जोधपुर ०९४१३४०८४२२
Comment
हिंदी का मान बढ़ाती हुई सभी ग़ज़लें पसंद आई आ० खुर्शीद जी आपको हार्दिक बधाई |
आदरणीय गिरिराज सा. नरेंद्र सिंह सा. गोपाल नारायण सा. आदरणीया माहेश्वरी जी महिमाश्री जी आप सभी का ह्रदय की गहराइयों से आभार |सादर
आ. खुर्शीद भाई , मज़ा आगया , हिन्दी प्रेम में पगी आपकी ग़ज़लों के लिए दाद हाज़िर है |
सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको सादर
बहुत धुआंधार i बार बार लगातार i
क्या बात है .. हिंदी की शान में एक से बढ़ कर एक अशआर कहे आपने आदरणीय बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online