“तालाब सूख जाएगा बरगद की छाँवों में ”
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अब आग आग है यहाँ हर सू फ़ज़ाओं में
तुम भी जलोगे आ गये जो मेरी राहों में
तिश्ना लबी में और इजाफ़ा करोगे तुम
ऐसे ही झाँक झाँक के प्यासी घटाओं में
वो शह्री रास्ते हैं वहाँ हादसे हैं आम
जो चाहते सकूँ हो, पलट आओ गाँवों में
तू देख बस यही कि है मंजिल बहुत क़रीब
तू देख मत अभी से कि छाले हैं पांवों में
तू बस मिला नज़र, मेरे ज़ज्बात पढ़ के देख
किसको मिला क्या घूर के खाली खलाओं में
जब धूप सब सुखाये , भला कैसे ये कहूं
“तालाब सूख जाएगा बरगद की छाँवों में ”
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई , आपका बहुत शुक्रिया |
बहुत सुन्दर...बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर लाजबाब...
जब धूप सब सुखाये , भला कैसे ये कहूं
“तालाब सूख जाएगा बरगद की छाँवों में ” ...खूब कहा बधाई आदरणीय.
बेहतरीन गजल हुई है ,,,,,,,,,,,,,,हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
आ.बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिए दिली शुक्रिया |
आदरणीय लक्ष्मण भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका दिली शुक्रिया |
आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकाई सराहना के लिए आपका दिली शुक्रिया |
आ. भुवन भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार |
आ. नीरज भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिए आपका आभार |
वाह वाह मित्र
कभी कभी आप अचानक चौंका देते हो i बेहतरीन गजले हुई हैं i सादर i
अब आग आग है यहाँ हर सू फ़ज़ाओं में
तुम भी जलोगे आ गये जो मेरी राहों में
तिश्ना लबी में और इजाफ़ा करोगे तुम
ऐसे ही झाँक झाँक के प्यासी घटाओं में
आदरणीय भाई गिरिराज जी यू ंतो पूरी गजल बेहतरीन है पर ये दो शेर अत्यधिक पसंद आए । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
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