फुसफुसाने की आवाज सुन काजल जैसे ही पास पहुँची सुना कि -तुम आ गये न, मैं जानती थी तुम जरुर आओगें, सब झूठ बोलते थे, तुम नहीं आ सकते अब कभी|
"भाभी आप किससे बात कर रही हैं कोई नहीं हैं यहाँ"
"अरे देखो ये हैं ना खड़े, जाओ पानी ले आओ अपने भैया के लिय बहुत प्यासे है|"
डरी सी अम्मा-अम्मा करते ननद के जाते ही भाभी गर्व से मुस्करा दी|
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय राजेश दी आभार तहेदिल से आपका जो आपको पसंद आई अपन लेखन सफल रहा
आदरणीय विजय भैया आभार है हम आपके .....सुन्दर लाइनें दें आपने इस कथा को मान दे दिया
डरी सी अम्मा-अम्मा करते ननद के जाते ही भाभी गर्व से मुस्करा दी----लघु कथा की इस अंतिम पंक्ति ने भाभी के चरित्र का अनावरण कर दिया एक पञ्च की तरह लगा यही इस लघु कथा की विशेषता है | बहुत बहुत बधाई आपको सवितामिश्रा जी ,आजकल रिश्तों से ही विश्वास उठ चला है किस के दिल में क्या छुपा है कह नहीं सकते |
बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का तहेदिल से ..यूँ ही सदा मार्गदर्शन करते रहें आपके कमेन्ट हमें संबल प्रदान करते है!
बहुत ही बढिया लघुकथा ....... बधाई सादर!
इंतजार कभी ख़त्म नहीं होता अनवरत चलता जीवन के साथ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई आदरणीया सविता मिश्रा जी.
सुन्दर लघुकथा के लिए दिली बधाइयाँ | |
शुक्रिया आपका अप्ररुब करने के लिए
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