For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम ( गिरिराज भंडारी )

 तीर के अपने नियम  हैं जिस्म के अपने नियम

***********************************************

2122       2122        2122     212

तीर के अपने नियम  हैं जिस्म के अपने नियम

एक  का जो फर्ज़  ठहरा  दूसरे  का  है सितम

 

कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर  नुमा

और कुछ  मज़बूतियों के थे हमे भी  कुछ भरम

 

मंजिले  मक़्सूद  है, खालिश  मुहब्बत  इसलिए

बारहा  लेते   रहेंगे  मर के  सारे  फिर  जनम

 

किस क़दर अपनी मुहब्बत मुश्किलों मे फँस गई 

इस तरफ खींचे मुहब्बत उस तरफ  खींचे  धरम

 

तुम  मुहब्बत को  मुहब्बत की नज़र से देखना

तब मुहब्बत को समझ पाओगी,ओ संगे  सनम

 

गर वफ़ा  की बात दिल में है नहीं, क्या फ़ाइदा

लाख वादे तुम करो , खाते रहो जितनी  क़सम

 

अश्क़  का  दर्या  बहा जब लोग  देखे तो मगर

संग दिल लोगों की आँखें हो न पायीं थोड़ी नम

 *******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 5:31pm

सादर आभार आदरणीय,मेरा संशय भी दूर हुआ  मक्सूद शब्द को लेकर मार्गदर्शन भी हुआ ,पुनः बधाई आपको इस शानदार ग़ज़ल के लिए  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 5:27pm

आदरानीया राजेश जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत आभार |

मक़्सूद  --- सही शब्द है , और दूसरा शब्द खालिस सही है ,  खालिश--  टंकण त्रुटि हो गयी है , सुधार लूंगा | आपका आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 5:23pm

आदरणीया सविता जी , आपका आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 5:23pm

आ. दया राम भाई , सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 4:49pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ० गिरिराज जी ,शानदार मतला ,सभी शेर कमाल के हैं ,बस यहाँ थोडा संशय है --मंजिले  मक़्सूद  है, मक्सूद है या मक़सूद  खालिश  मुहब्बत  इसलिए----खालिश है या ख़ालिस कृपया मार्ग दर्शन करें क्यूंकि मैं भी सिर्फ संशय में हूँ ..

आपकी इस ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद प्रेषित हैं 

Comment by savitamishra on September 25, 2014 at 4:45pm

बहुत सुंदर ..सादर नमस्ते

Comment by Dayaram Methani on September 25, 2014 at 2:32pm

बहुत सुंदर गज़ल। बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 12:37pm

कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर  नुमा

और कुछ  मज़बूतियों के थे हमे भी  कुछ भरम

आ. पाठकों से अनुरोध है कि  इस शे र को कृपया ऐसे पढ़ने की कृपा करें --

कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर  नुमा

और कुछ  मज़बूतियों के  हम भी  पाले थे  भरम

                                                          


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 12:21pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्षमा याचना कर के आप मुझे शर्मिंदा न करें , जो गलत है वो गलत है , कुछ का उपवोग २ बात गलत ही है , आपका आभारी हूँ , ध्यान दिलाने के लिए | मैं  ज़रूर  सुधार कर लूंगा | आपका पुनह आभार |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2014 at 11:59am

मित्र

आपसे जैसी उम्मीद होती है बिलकुल वैसी ही है i 'और कुछ  मज़बूतियों के थे हमे भी  कुछ भरम' इसमें कुछ का दो बार प्रयोग  कुछ खटकता है i  कुछ करिए मित्र i  क्षमा याचना सहित i  सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
6 hours ago
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service