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पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१)

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री ऋषि प्रभाकर जी के मंगल विवाह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ | 25 सितम्बर की शाम को लेडीज संगीत के आयोजन में शामिल होना तय था | हमारी ट्रेन दिल्ली से राजपुरा तक थी वहाँ से हमने  बस पटियाला तक की ली फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी बस स्टैंड पर हमें प्यारे से रोबिन और मनु जी लेने आ गए | इस बीच में लगातार प्रभाकर सर, आ. गणेश जी बागी से दिशा निर्देश मिलता रहा |

आ. योगराज सर के नए नवेले, शहर से दूर, खेतों और हरियाली के बीच स्थित हवादार बंगले में पारम्परिक तरीके से स्वागत हुआ | दरवाजे पर आ. रवि प्रभाकर जी और आदरणीया श्रीमती योगराज प्रभाकर जी ने स्वागत किया | दरवाजे के दोनों कोनों पर सरसों के तेल की कुछ बूँदें गिराई गयीं, फिर गुलाब जामुन से मुहं मीठा कराया गया | घर दुल्हन की तरह सजा था हम रात को ८ बजे के करीब पहुँचे थे अतः संगीत समारोह की तैयारी हो चुकी थी और मेहमानों के आने क्रम चल रहा था | वातावरण में पंजाबी गानों का समा बंधा हुआ था | घर के अंदर प्रवेश करने के बाद हमें सभी बड़े –छोटे सदस्यों  से मिलवाया गया | सभी  बड़े ही प्यार और गर्मजोशी से मिले |

हमसे पहले दोपहर में आ. सौरभ पाण्डेय जी और आ. गणेश बागी जी पहुँच चुके थे | पहले हम योगराज सर का बंगला घूमे जो कि बहुत ही हवादार है और आंतरिक साज-सज्जा अभी चल रही है । आदरणीय सर ने हमें सजावट के लिए लायी गयी शानदार पेंटिंग्स दिखाईं जो उनकी कलात्मक रूचि को बखूबी परिलक्षित कर रही थीं |

आदरणीय सौरभ जी ऊपर के कमरे में रुके है हमें बताया गया | हम यानी कि मैं और गीतिका वेदिका | दिल्ली से हम साथ आये थे पटियाला | हम ऊपर कमरे में उनसे मिलने गए | वे अकेले बैठे थे । आ. प्रभाकर सर और  आ. बागी जी शादी के कुछ कार्य से गए हुए थे | वहीं पर हमारे लिए सगुन के गुलगुले और कई तरह के नमकीन आ गए, साथ में चाय भी | आ.सौरभ जी ने चुटकी ली "ये लो आ गया सगुन का गुलगुला" .."गुड खाए और गुलगुले से परहेज" उन्होंने गुलगुले को देख प्रचलित मुहावरे को उदधृत किया | हम सबके चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी और कुछ देर तक गुलगुले महाराज ही छाए रहें | मैं मन ही मन में सोच रही थी कमाल है ! गुलगुला महाराज तो पंजाब में भी धाक जमाये हैं | पिताजी की कही बातें  याद आ रही थी उन्होंने  बचपन में बताया  था गुलगुला प्राचीन वैदिक काल से प्रचलन में है और ये मिष्ठान उसी समय से हमारे यहाँ पूजा–पाठ में,यज्ञ की आहुति में डालने के लिए बनता चला आ रहा है | आज भी माँ रामनवमी के दिन पूजा में चढाने के लिए बनाती  हैं | और नवरात्रि में नवमी के दिन पूरी और गुलगुले भी हवन में डाले जाते हैं और प्रसाद के रूप में हमारे घर में खाए जाते है और बाटें जाते हैं | गुलगुला बनाना जितना आसान है और खाना उतना ही स्वादिष्ट बशर्ते उसे सिर्फ गुड में बनाया जाए और शुद्ध देशी घी में तला जाए|

 

गुलगुला प्रकरण तक बागी जी और आ. प्रभाकर सर आ चुके थे और हमें देख कर बहुत ही प्रसन्न हुए और हमे गले लगाया | आ. प्रभाकर सर हमें कभी भी पैर नहीं छूने देते, वे हमेशा कहते हमारे यहाँ लड़कियाँ पैर नहीं छूतीं और सभी गले लगाते हैं | अपने देश में हर शहर की अपनी बोली, अपनी भाषा और अपना चेहरा है और जुदा होता हुए भी अपना सा है । सबमें  कुछ न कुछ समानता है कई भिन्नताओं के बाद भी जैसे गुलगुला | पैर न छूनेवाली बात पर हम सभी (आ. सौरभ जी, आ. बागी जी, मैं) अपनी पूर्वी आचार–विचार की बात करने लग गए कि बिहार और यू.पी में बड़ो के पैर छूना कितना अनिवार्य है, चाहे लड़का हो या लड़की | इसी बीच में आ. गीतिका जी ने आ.सौरभ जी से पूछा कि व्यंजना, लक्षणा और अभिधा में क्या अंतर है ? पहले तो उन्होंने कहा कि ’चार दिनों के लिए कोई पढाई नहीं’ । फिर गीतिका के बार–बार अनुरोध पर उन्होंने इनके बारे में सोदाहरण बताया |

तरह-तरह के बातों के बीच ढेर सारी प्यारी -२ बच्चियाँ आ गयी और उन्होंने हमें संगीत में शामिल होने के लिए जल्दी से तैयार होने को कहा ।  उनके साथ  डांस करने के लिए निमंत्रित भी किया । इसी बीच आ. राणा प्रताप जी का भी पटियाला आगमन हो गया | हम तैयार होकर नीचे आ गए । रात के साढ़े नौ बज चुके थे | बड़े कमरे में रस्म चल रहा था जहाँ थोड़ी देर रुकने के बाद, हम सब सीधे संगीत स्थल पर पहुचें | यहाँ विभिन्न प्रकार के स्नैक्स चलाये जा रहे थे । हमने भी गोल्पप्पे और पाव-भाजी का आनंद उठाया | प्यारी बच्चियाँ हमारे साथ लगी हुयी थीं | इस बीच में हमें आशीर्वाद के तौर पर लिफाफा आ. सौरभ जी द्वारा मिला जो आ. प्रभाकर सर ने दिया था |

पंडाल अभी खाली था । डीजे का संगीत चल रहा था । सबसे छोटी सुंदर सी सोनल ने कई गानों पर एक से बढ़ कर एक नृत्य किये । हर बीट पर उसकी थिरकन और उस के संतुलित भाव भंगिमा ने सब का दिल जीत लिया | कहीं से लगता ही नहीं था की इसने भली-भाँति डांस नहीं सीखा है | इस बच्ची में संगीत को समझने की प्रतिभा जन्मजात है | उसके सारे डांस स्टेप्स इतने सधे हुए थे कि लग रह था की वो पूर्णतया प्रशिक्षित है | इन सबके दौरान रस्म समाप्त हुए और सभी लोग संगीत समरोह के लिए तैयार पंडाल में आ चुके थे । इधर संगीत भी अपने रवानी था । आ. योगराज सर के आते ही माहौल और मस्त हो गया । उन्होंने डांस किया भी और करवाया भी ! आ. सौरभ जी, आ. राणाजी ओर आ. बागी जी और गीतिका को खूब नचवाया | और जब समारोह अपने चरम पर पहुचा तो पटियाला में पंजाबी गीत ट्रैक की जगह पर भोजपुरी बजने लगा । उसके बाद तो फिर क्या कहने थे ! धरती फोड़ डांस हुआ जिसका वर्णन जरा मुश्किल है इसलिए मैंने आपकी कल्पना पर छोड़ दिया जा रहा है .....

क्रमशः

पटियाला से उना- हरियाली और रास्ता (दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे – ...

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2014 at 7:58am

कल ही मैं आदरणीय गिरिराज सर से मिला था तब मुझे पता चला था कि पटियाला में बढ़िया गेट टुगेदर हुआ था, आपके इस लेख को पढ़ा तो लगा कि मैं भी पटियाला पहुँच गया 

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 4:32pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी , सादर नमस्कार 

आप जैसे अनुभवी और विद्वान् से आशीर्वाद रूपी टिप्पणी पाकर मन प्रफुल्लित हो जाता है और लिखना सार्थक लगने लगता है .. आपकी प्रसंशा पाकर गौरवान्वित हूँ ...सादर आपकी शुभकामनायें और आशीर्वाद अवश्य उन्हें प्राप्त हो गा सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 30, 2014 at 3:56pm

आदरणीय महिमा श्री जी , बहुत सुन्दर एवं सजीव आँखों देखा हाल बयान किया। आपके अवलोकन और अंकन में असाधारण आकर्षण है, जारी रखें , कृपया।
आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी को प्रिय पुत्र चिरंजीव ऋषि प्रभाकर के शुभ विवाह पर हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं।

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 2:16pm

मेरे प्यारे विवेक भाई ...ये सिर्फ संगीत के दिन की झलकियाँ हैं आपकी इंट्री 36 घंटे बाद हुयी थी ...अतः आपकी इंट्री करुँगी पर थोड़ी देर से ...मैंने नीचे क्रमशः लिखा है ...यानी पिच्क्चर अभी बाकी है ...इतंजार करो ..:)

बहरहाल सराहना के लिए हार्दिक आभार ..

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 2:12pm

आदरणीया सीमा दी ..नमस्कार आपकी शुभकामनाएं आ.  योगराज सर के पास पहुँच  चुकी होगी ..वृतान्त द्वारा  समारोह की झलकियाँ दे पायी और आप सबने सम्मिलित होने का एहसास जिया ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है ..सादर 

Comment by Vivek Jha on September 30, 2014 at 1:38pm

बहुत अच्छा लिखा महिमा दी, एकदम जीवंत लग रहा है, लग ही नहीं रहा मैंने इसे मिस किया हो | मेरी एंट्री भी तो डालो इसमें हे हे हे :)

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 1:34pm

आदरणीया प्राची जी , नमस्कार 

हमें भी आप लोगो की कमी खल रही थी सभी का मिलना होता तो   महफ़िल में रंग और जमता |बरहाल आपको समारोह की झलकियाँ अगर दिखा पाने में सक्षम रही हूँ और आपने वाकई में आनंद में शामिल होने का सुख मह्सुस किया है तो मेरा लिखना सफल रहा .आदरणीया 

Comment by seema agrawal on September 30, 2014 at 1:34pm

आप लोगों के साथ बहुत से लोग शादी में सम्मिलित हो गए इस जीवंत वृतांत के माध्यम से ........योगराज जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2014 at 1:21pm

प्रिय महिमा जी 

बहुत जीवंत यात्रा वृतान्त... पंक्ति दर पंक्ति इससे गुज़रते हुए इसे अनुभव करते हुए ऐसा लगा जैसे मैं भी वहीं भावरूप में खड़ी इन स्नेहसिक्त पलों की साक्षी हूँ.... 

इन ख़ास पलों को सांझा करने के लिए धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 1:01pm

आपका बहुत -२ आभार  आ. हरिवल्लभ जी | आपको वृतांत रोचक लगे और समारोह की मस्ती को आप तक पहुँचीं जानकार ख़ुशी हुयी .सादर 

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