थका-हारा-मेहनतकश आदमी
थका-हारा-मेहनतकश आदमी कहीं भी सो सकता है
24 घंटे चिल्लाती पौं-पौं पी-पी पू-पू करती
धूल फांकती धुआं चाटती सड़को के फूटपाथों पे भी |
उसके फेफड़े बहुत मज़बूत होते हैं
धूल-धुआँ फाँकते हुए विकास लेते हैं
उसके कान रोज़-रोज़ की चीख-पुकार से
इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि
शोर में से नींद की पुकार छानना जानते हैं |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी कच्चा-पक्का कुछ भी खा लेता है
मज़े की बात ये की उसे दस्त नहीं लगते उसकी तोंद नहीं पनपती
“ शुगर “वो हंसकर कहता है कि वो गुड़ खाता है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी मिट्टी में खेलते-लोटते पलता है
वो ट्यूबवेल-कारपोरेशन का पानी धड़ल्ले से पीता है
और विज्ञापनों के खतरनाक बैक्ट्रिया को ठेंगा दिखाता है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी ठहाका मार के हंसता है
और आज के लिए जीता हैऔर कभी-कभी वो दारु भी पीता है
ऐसे में वो नालियों, गड्डों में गिर जाता है
और खुद को देश का पी.एम बताता है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी मज़दूर है किसान है
रिक्शेवाला है, कूली है, सब्जीवाला है ,चायवाला है
हरेक वो आदमी जो अपनी मेहनत से दूसरों का खजाना भरता है
और मुस्कुराते हुए हाड़-तोड़ मेहनत करता है
जो रोटी पे नून-तेल मल मस्ती से खा लेता है
प्याज छीन जाने की शिकायत भी नहीं करता
थका-हारा-मेहनतकश आदमी है और इस देश का निर्माता है|
पर बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलने वाला बर्जुआ-वर्ग
उसे बात-बात पे आँख दिखाता है/गरियाता है
निगम हो या पुलिस उसे डंडे से हांकती है
जैसे मेहनतकश आदमी इस देश का नागरिक नहीं अपराधी है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी के बच्चे सरकारी स्कूलों में पड़े हैं
एक रूम में भेड़-बकरियों की तरह भरे हैं
फ्री के लोलीपोप से सरकार इनकी तादाद बढ़ा रही है
बर्जुआ वर्ग के शिक्षको के लिए ये फ्री के चाकर हैं
इनसे उनकी नौकरी सलामत है इसलिए लाकर हैं
कई शालीन टीचरों को इनके कपड़ो से बू आती है
इनकी बहती नाक से वो ओका जाती हैं और
इनके पास आने से भी वो कतराती हैं जबकि
इनके कारण उनके बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं
और बर्जुआ बने रहने का पैमाना गढ़ते हैं |
शिक्षा का एक समांतर विभाजन बर्जुआ-वर्ग ने बनाया है
और पार्टी कोई भी रही हो सबने इस पर समर्थन जताया है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी जब
बीमार होता है तो लाचार होता है
मजबूरन वो चुनता है झोला-छाप डाक्टर
या सरकारी अस्पताल और दोनों जगह ही
खतरे में रहता है उसका जान-माल
और कमाल की बात ये की
वो विरोध तक नहीं करता
बस बुदबुदा भर देता है कभी-कभार |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी यूँ तो
व्यवस्था की रीढ़ है
और उसपे सबसे ज़्यादा बोझ लदा है
पर उसके ऊपर तना हुआ कंधा है
जिस पर व्यवस्था का सारा गोरखधंधा है |
थका-हारा-मेहनतकश आदमी अगर
सीधा हो जाएगा अपनी अंगुलियाँ चटखाएगा तो
उस दिन व्यवस्था ज़मीनदोज हो जाएगी
और ये जो बड़ी-बड़ी कुर्सी है/अकड़ हैं
गिरेगी /भौएँ खड़ी हो जाएंगी |
इसलिए व्यवस्था के ऊँचे पायदानों पे काबिज
सभी सत्ताधीशों सुन लो
थका-हारा-मेहनतकश आदमी की संगठित ताकत को गुन लो
उसे बाँट कर राज करने की आदत से बाज़ आओ
उसके दुख दर्द को समझों उसकी तकलीफों को अपनाओं
थका-हारा-मेहनतकश आदमी है तो तुम हो
अन्यथा तुम जानते हो मेरा ईशारा
थका-हारा-मेहनतकश आदमी
यानि सर्व-हारा |
C-@-सोमेश कुमार 10/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )Comment
सुन्दर रचना ..सादर बधाई
सोमेश कौर जी
इसमें संदेह नहीं कि आपकी भावनाए झिन्झोडती है और कथ्य में बड़ा दम है i पर इसे कविता के स्थान पर भावात्मक गद्य कहना शायद अधिक उचित हो i विद्वानों की राय अपेक्षित है i
आदरणीय शिज्ज "शकर जी एवं sharadindu mukerji ji अपना स्नेह एवं मार्गदर्शन देने केलिए आभर |शायद भावनावों के बहाव में मैं इतना बह जाता हूँ की लिखते समय कुछ और ध्यान नहीं रख पाता |कृपया मार्गदर्शन करें इस मंच के किस ग्रुप में या अन्य कहाँ मैं कविता की बारीकियों को समझ सकता हूँ /सुधार सकता हूँ |
आदरणीय, मैं शिज्जु"शकूर" जी की टिप्पणी को ही दोहराऊंगा. एक संवेदनशील हृदय है आपके पास, कविता स्वाभाविक रूप से आनी चाहिए आपकी रचनाओं में. बस, आपको और समय देना पड़ेगा उन्हें पोस्ट करने के पहले. प्रस्तुत रचना में 'काव्यात्मकता' केवल इन पंक्तियों में ही ढूँढ़ पाया मैं - //
उसके कान रोज़-रोज़ की चीख-पुकार से
इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि
शोर में से नींद की पुकार छानना जानते हैं |//
इसके अलावा आपको हिज्जे पर भी ध्यान देना पड़ेगा. हार्दिक शुभकामनाएँ. सादर.
आदरणीय सोमेश जी आपने बड़ी मेहनत से लिखा है इसमे कोई शक नहीं, अतुकांत कविता के संदर्भ में इस मंच के सम्माननीय सदस्य आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी ने एक बहुत ही अच्छी बात कही थी "अतुकान्त विधा में एक महीन रेखा होती है जो काव्यकर्म को संवेदनशील किन्तु सपाट बयानबाज़ी से अलग करती है" विषय संवेदनशील है लेकिन थोड़ा और समय दिया जाता तो कविता का सहीं आनंद मिलता।
सर |रचना आप को पसंद आई तो मेरा लिखना सार्थक हुआ |आशा आगे भी आप का मार्गदर्शन प्राप्त होगा |
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