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पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर  पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी  चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता हैऔर एक दिन में कई पतंगें कटवा देता है..

   

   जितेन्द्र ‘गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 16, 2014 at 8:15am

रचना को आपका आशीर्वाद मिला, रचना धन्य हुई आदरणीय लक्ष्मण जी. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 16, 2014 at 8:14am

लघुकथा पर आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय हरिबल्लभ जी. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 4:47pm

चलों चोट खाकर हद में तो रहने लगा, यह भी अच्छा संकेत है | सुंदर सीख देती लघु कथा के लिए बधाई श्री जित्रेंद्र भाई 

Comment by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 4:15pm

सार्थक लघु कथा आदरणीय जितेन्द्र "गीत' जी कहावत " ठोकर लगते ही ठाकुर बनते " चरितार्थ करती है..शिक्षा प्रद...बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 11:47pm

आपकी सराहना हेतु ह्रदय से आभार, आदरणीय संदेश जी

सादर!

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 12:55pm

आ. जीतेन्द्र जी, इस प्रशंसनीय कार्य के लिए बधाइयाँ |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 12:01am

लघुकथा आपको रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय खुर्शीद साहब. आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 11:59pm

आपकी उत्साहवर्धन करती सराहना से रचना को सार्थकता मिली आदरणीय डा.विजय जी. आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:24pm

आदरणीय जितेन्द्र जी ,अच्छी सीख देती लघुकथा का हार्दिक अभिनन्दन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 13, 2014 at 9:50pm

हद में रहना ही अच्छा है , भले ही पतंग कट  जाए।   प्रिय जीतेन्द्र जी , लघु कथा के लिए  बहुत बहुत बधाई।   

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