पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता है, और एक दिन में कई पतंगें कटवा देता है..
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना को आपका आशीर्वाद मिला, रचना धन्य हुई आदरणीय लक्ष्मण जी. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
लघुकथा पर आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय हरिबल्लभ जी. स्नेह बनाए रखियेगा
सादर!
चलों चोट खाकर हद में तो रहने लगा, यह भी अच्छा संकेत है | सुंदर सीख देती लघु कथा के लिए बधाई श्री जित्रेंद्र भाई
सार्थक लघु कथा आदरणीय जितेन्द्र "गीत' जी कहावत " ठोकर लगते ही ठाकुर बनते " चरितार्थ करती है..शिक्षा प्रद...बधाई.
आपकी सराहना हेतु ह्रदय से आभार, आदरणीय संदेश जी
सादर!
आ. जीतेन्द्र जी, इस प्रशंसनीय कार्य के लिए बधाइयाँ |
लघुकथा आपको रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय खुर्शीद साहब. आपका हार्दिक आभार
सादर!
आपकी उत्साहवर्धन करती सराहना से रचना को सार्थकता मिली आदरणीय डा.विजय जी. आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी ,अच्छी सीख देती लघुकथा का हार्दिक अभिनन्दन
हद में रहना ही अच्छा है , भले ही पतंग कट जाए। प्रिय जीतेन्द्र जी , लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई।
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