For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए

 

रोटी कपड़ा मकाँ की तरह साथियों

रौशनी लाज़मी हो सभी के लिए

 

वो भटकता हुआ इक मुसाफ़िर है ख़ुद

चुन रहे हो जिसे रहबरी के लिए

 

हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया

मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए

 

खैरियत से रहे सब हबीबो-अदू

मैं दुआ माँगता हूं सभी के लिए

 

मैं ग़मों को गले से लगाता रहा

लोग रोते रहे जब ख़ुशी के लिए

 

दोस्ती  आशिकी बंदगी शायरी

अब जरुरी नहीं आदमी के लिए

 

दीप जलते रहें जश्न मनता रहे

बदगुमानी रहे कुछ घड़ी के लिए

 

गाँव में तीरगी है मुसल्सल मगर

फिर चरागाँ हुआ शहर ही के लिए

 

और ‘खुरशीद’ का सिर कलम हो गया

है यही इक सजा सरकशी के लिए

 

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on November 10, 2014 at 2:03pm

आदरणीय विजय निकोरे साहब ,आदरणीया महिमा श्री जी ,आदरणीय जितेन्दर् जी ,सोमेश जी ,श्यामनारायण जी और परम आदरणीय गोपालनारायण जी ,हौसलाअफजाई के लिए शुक्रगुजार हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by vijay nikore on October 21, 2014 at 2:59am

खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by MAHIMA SHREE on October 19, 2014 at 8:11pm

इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए.... लाजवाब मतला ...हर शेर उम्दा ..हार्दिक बधाई प्रेषित है 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2014 at 9:29am

बेहतरीन गजल कही आपने, आदरणीय खुर्शीद साहब. दिली बधाई कुबूल करें

Comment by somesh kumar on October 17, 2014 at 7:56pm

adbhut 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2014 at 6:51pm

हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया

मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए

 

दीप जलते रहें जश्न मनता रहे

बदगुमानी रहे कुछ घड़ी के लिए

और ‘खुरशीद’ का सिर कलम हो गया

है यही इक सजा सरकशी के लिए-     बेहतरीन खुर्शीद भाई i दीपावली सी जग गयी मानो i  बधाई हो i

 

Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2014 at 5:41pm

बहुत सुन्दर गजल  ... आपका बधाई ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service