मानसिकता
“ सुना है ,कल छठ की गजटेड छुट्टी है ? ” मिस कामिनी ने चिप्स मुँह में भरते हुए कहा
“जी |”
“ अच्छा है एक और दिन आराम को मिला पर किसी और पर्व पे करनी चाहिए थी इसीलिए तो इन लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है दिल्ली में - - - “उन्होंने गिरे हुए चिप्स को पैरों से रौंदते हुए कहा |
“तो कहाँ जाएँगे ये लोग !क्या ये देश/शहर इनका नही हैं ?”
“वहीं रहें ,सिर्फ उतने आने दिए जाएँ जिससे गंदगी ना हो और हमे लेबर वगैरह आराम से मिलते रहें “उन्होंने खाली पैक्ट वहीं फैंक दिया |
“ वैसे आप के पति भी तो दिल्ली के नहीं हैं ना ! “
“ पर वो तो गजटेड अफसर हैं उनसे आप इनकी तुलना ना करें | “उन्होंने झेपते हुए जवाब दिया
खाली पैक्ट उड़कर उनके पेट से टकराया और फिर जमीन पर आ गिरा |
C-@-सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
क्या कहने हैं भाई सोमेश कुमार जी, मानसिकता शीर्षक को लघुकथा के माध्यम से बखूबी परिभाषित किया है, हार्दिक बधाई।
आदरणीय सोमेश जी,
चिप्स के पैकेट को ले कर सुन्दर व्यंग्य कहा है. गंदगी मानसिक होती है जो व्यवहार में परिणत हो कर बाहर आती है.
सादर.
आ. सोमेश भाई , बढिया व्यंग्य लघुकथा कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । अग्रजों की सलाह पर ध्यान देते रहियेगा , रचना निखरते जायेगी ।
लघुकथा से निस्सृत व्यंग्य को महसूस किया जा सकता है.
धीरे-धीरे कथानक में कसावट आती जायेगी. आपके कहे की आगे भी प्रतीक्षा रहेगी.
शुभेच्छाएँ
मार्गदर्शन एवं आशीष के लिए आभर ,आदरणीय डा गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी ,इस वाक्य को जोड़ने के पीछे अपने स्वार्थ पर लगने वाली ठेस को जताना है | चिप्स खाने-मसलने और पैक्ट को फैकने में आनन्द है पर उसके बिना स्वाद ,ताजगी और उदर-पूर्ति खतरे में है |फिर भी अगर आप अंत के लिए कोई अन्य वाक्य सुझाएँ तो स्वागत है
मित्र कथानक अच्छा है i सन्देश व्यंग्य सब अच्छा है पर लघु कथा में अनावश्यक विस्तार नहीं चाहिए i खाली पैकेट उनके पेट से टकराया----=== वाक्य प्रक्षिप्त सा लगता है i इसकी आवश्यकता न थी कथानक में कसाव पर विशेष ध्यान अपेक्षित है i
AABHAR
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