आदत-मज़बूरी
जाम में फंसी गाड़ी पर उस लड़के ने कपड़ा रगड़ा और मुहँ-पेट की तरफ़ ईशारा किया तो उसने उसकी तरफ़ ध्यान ना देते हुए अपनी 5 मासी गर्भवती पत्नी से कहा –“सालों की आदत है ,भिखमंगे कहीं के “
एक बुढ़ा अगरबत्ती के पैक्ट लेकर पहुँचा और मुँह-पेट की तरफ ईशारा किया – “30 की दो ले लो - - -“
“ऊँह ,भावनाओं के नाम पर लुट रहा है बुड्ढा - - ” उसने पत्नी को देखकर धीरे से कहा |
गजरे बेचने वाली जब वो मलिन औरत आई तो पत्नी की आँखों में आई चमक को देखकर कहा
“बासी फूल हैं और जाने कौन-कौन से इन्फेक्शन हो इसे- - “ पत्नी ने कुछ ना कहा
तभी ताली बजाते हुए वो आया –“राम जी बेटा देंगे ,चलों 50 निकालों - - “
उसने पत्नी की तरफ देखा और 20 का नोट बढ़ाने लगा |
“इतने में तो मेरे जैसा आएगा “उसने नोट ठुकराते हुए कहा
उसने घबराकर 50 रुपए बढ़ा दिए |
जाम खुल गया था |
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सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
बेटे की कामना ....मनोकामना पूरी हो इसके लिए कुछ भी दान पुन्य करने को तैयार दीखते हैं ...अच्छा चित्रण!
दान पुण्य या गरीब का सहायता नहीं बल्कि, अपनी मनोकामनाए पूरी हो इस भाव से मदद करते है |
मनुष्य के मन के स्वार्थ को दर्शाने में सफल रही है कहानी | बहुत बहुत बधाई श्री सोमेश कुमार जी
आदरणीय सोमेश कुमार जी , बहुत सुन्दर चित्रण है|दया और भय दोनों में जब जब प्रतिस्पर्धा हुई है ,भय की विजय हुई है |सादर अभिनन्दन
सुन्दर लघुकथा, हार्दिक बधाई।
स्नेह और आशीष के लिए सभी मनीषी मित्रों एवं अग्रजों का साधुवाद
आदरणीय सोमेश भाई , रोजमर्रा की घटना से आपने बढिया बात निकाली है , भय के बिना आदमी की आदमीयत भी बाहर नही आती , सच है । बधाई स्वीकार करें ।
बहुत सुंदर चित्रण. एक पिता के मन के डर को बहुत सार्थक प्रस्तुति मिली. बधाई आदरणीय सोमेश जी
वाह आदरणीय सोमेश जी एक सुंदर कटाक्ष , दिन प्रतिदिन होने वाली घटना का सुंदर चित्रण किया है आपने। … इस सुंदर लघु कथा का मर्म स्वयं के मन का भीरु होना है बात जब स्वयं पर आती है तो हर बात जायज़ लगती है वरना दूसरे की मज़बूरी भी नाज़ायज़ लगती है … हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति हेतु आदरणीय
वाह बहुत अच्छी बहुत अच्छी लघु कथा ...एक चुभता हुआ सन्देश देने में सफल कहानी .हार्दिक बधाई सोमेश कुमार जी.
बहुत अच्छी लघुकथा , बधाई.. |
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