धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश
पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास
कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव
धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव
प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न
हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न
आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त
आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त
मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट
इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट
नींदे जगती रात भर , सोते रहते ख़्वाब
भूल गयीं जैसे लगे , ये लंबा कोई हिसाब
ख़्वाबों का हो जाए भी , फिर चाहे अवसान
इक पल तेरी आँख में , मिल जाए स्थान
जीवन भर की दोस्ती , इक पल का संवाद
साँसों के संबंध का , बस इतना अनुवाद
अमुद्रित / अप्रकाशित
अजय क शर्मा
9415461125
Comment
अच्छी कोशिश
giriraj ji apka kaha sir mathe ......follow avshya karoonga ....
आदरणीय अजय भाई , बहुत जानदार बातें कही है आपने दोहों के माध्यम से , आपको बधाइयाँ । शिल्प के विषयमे आ. गोपाल भाई बता चुके हैं , जरूर ध्यान दीजियेगा ।
pahli baar hi prayas kiya hai ...dohawali .....par ....adar. Dr. gopal ji ke sujhav par karya karoonga .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ० डॉ गोपाल नारायण जी के सुझाव ध्यातव्य हैं शिल्प पर सधकर उन्नत दोहावली निखर कर आएगी |बहुत बहुत बधाई आपको
बढ़िया , छंद विधान की जानकारी तो मुझे भी नहीं है ! ... चलिए दोनों सीखते हैं ! बहुत बढ़िया प्रयास !
हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न..>>>>>हर गरीब हो जाय इस , धरती पर संपन्न >>>> ए दो मात्राये हैं
मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट>>>> जो कोई जैसा मिला , स्वीकारा बेखोट >>>>> विषम चरणान्त 222 नहीं होता
इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट>>>>>>इसीलिये मेरा हृदय , पाया शायद चोट >>>>>>विषम चरण में 13 मात्राएँ चाहिए
भूल गयीं जैसे लगे , ये लंबा कोई हिसाब>>>>भूल गयी जैसे लगे , लम्बा एक हिसाब >>>>>> सम चरण में 11 मात्राये चाहिये
ख़्वाबों का हो जाए भी , फिर चाहे अवसान>>>ख़्वाबों का हो जाए फिर,भी चाहे अवसान>>>विषम चरणान्त 222 नहीं होता
इक पल तेरी आँख में , मिल जाए स्थान>>>>>इक पल तेरी आँख में , मिल जाए यदि स्थान>>>सम चरण में 11 मात्राये चाहिये
जीवन भर की दोस्ती , इक पल का संवाद>>>जीवन भर की मित्रता , इक पल का संवाद>>>>विषम चरणान्त 222 नहीं होता
ओ बो ओ साईट में समूह कें अंतर्गत छंद विधान में दोहों का शिल्प उपलब्ध है i कृपया उसे पढ़े i सस्नेह i
वाहहह
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