For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साँसों के संबंध का , बस इतना अनुवाद..............

धीरज धर कर जीवन को , पाला होता काश
पुष्प ना बनता मैं भले , बन ही जाता घास 

कितने जमनों का भँवर लिपटा मेरे पाव
धूप भी अब लगती सुखद जैसे ठंडी छाव

प्यासे को पानी मिले , गर भूखे को अन्न
हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न

आकर बैठो पास में मेरे भी , कुछ वक़्त
आगे का लगता सफ़र होने को है सख़्त

मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट
इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट

नींदे जगती रात भर , सोते रहते ख़्वाब
भूल गयीं जैसे लगे , ये लंबा कोई हिसाब

ख़्वाबों का हो जाए भी , फिर चाहे अवसान
इक पल तेरी आँख में , मिल जाए स्थान

जीवन भर की दोस्ती , इक पल का संवाद
साँसों के संबंध का , बस इतना अनुवाद

अमुद्रित / अप्रकाशित
अजय क शर्मा
9415461125

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on November 2, 2014 at 9:24am

अच्छी कोशिश

Comment by ajay sharma on November 1, 2014 at 10:37pm

giriraj  ji apka kaha sir mathe ......follow avshya karoonga ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:38am

आदरणीय अजय भाई , बहुत जानदार बातें कही है आपने दोहों के माध्यम से , आपको बधाइयाँ । शिल्प के विषयमे आ. गोपाल भाई बता चुके हैं , जरूर ध्यान दीजियेगा ।

Comment by ajay sharma on October 30, 2014 at 10:46pm

pahli baar hi prayas kiya hai ...dohawali .....par ....adar. Dr. gopal ji ke sujhav par karya karoonga .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2014 at 9:22pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ० डॉ गोपाल नारायण जी के सुझाव ध्यातव्य हैं शिल्प पर सधकर उन्नत दोहावली निखर कर आएगी |बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 30, 2014 at 9:10pm

बढ़िया , छंद विधान की जानकारी तो मुझे भी नहीं है ! ... चलिए दोनों सीखते हैं ! बहुत बढ़िया प्रयास !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 4:55pm

हर गरीब हो जाए इस , धरती पे संपन्न..>>>>>हर गरीब हो जाय इस  , धरती पर संपन्न >>>> ए  दो  मात्राये  हैं

मिला मुझे जैसा भी जो , स्वीकारा बे-खोट>>>> जो कोई जैसा मिला , स्वीकारा  बेखोट >>>>> विषम चरणान्त  222 नहीं होता

इसलिए शायद हृदय , पाया मेरा चोट>>>>>>इसीलिये मेरा हृदय , पाया शायद चोट >>>>>>विषम  चरण में 13 मात्राएँ चाहिए

भूल गयीं जैसे लगे , ये लंबा कोई हिसाब>>>>भूल गयी जैसे लगे , लम्बा एक हिसाब >>>>>> सम चरण में 11  मात्राये चाहिये

ख़्वाबों का हो जाए भी , फिर चाहे अवसान>>>ख़्वाबों का हो जाए फिर,भी  चाहे अवसान>>>विषम चरणान्त  222 नहीं होता

इक पल तेरी आँख में , मिल जाए स्थान>>>>>इक पल तेरी आँख में , मिल जाए यदि स्थान>>>सम चरण में 11  मात्राये चाहिये

जीवन भर की दोस्ती , इक पल का संवाद>>>जीवन भर की मित्रता  , इक पल का संवाद>>>>विषम चरणान्त  222 नहीं होता

ओ बो ओ साईट में समूह कें अंतर्गत  छंद विधान में दोहों का शिल्प उपलब्ध है i कृपया उसे पढ़े i  सस्नेह i

Comment by umesh katara on October 30, 2014 at 9:33am

वाहहह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
45 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service