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बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?(ग़ज़ल 'राज' )

१२२ १२२ १२२ १२२

नहीं पाँव दिखते जहाँ पर  खड़े हो

बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?

 

उड़ाया जिसे ठोकरों से हटाया

उसी ख़ाक के तुम छलकते घड़े हो

 

जमाना नया है नयी नस्ल आई

पुराने चलन पर अभी तक अड़े हो

 

झुकी कायनातें झुका आसमां तक

न सोचो खुदी को फ़लक पे जड़े हो

 

वही रास्ते हैं वही मंजिलें हैं

वही कारवाँ है मगर तुम छड़े हो 

 

जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले

निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो  

 

कभी आके लेलो जरा साँस बाहर

कहीं घुट न जाए गुमाँ में गड़े हो 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 7:32pm

आ० योगराज जी ,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना से ग़ज़ल धन्य हो गई हार्दिक आभार आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 7:30pm

आ० खुर्शीद जी ,ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर उत्साहित हूँ तहे दिल से आभार आपका |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 3, 2014 at 2:16pm

नहीं पाँव दिखते जहाँ पर  खड़े हो

बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?..आदरणीया राजेश जी बेहतरी ग़ज़ल है हर शेर मनभावन ..बस थोडा असमंजस है वो ये की इस शेर में तुम को लघु लेकिन अगले में 

उसी ख़ाक के तुम छलकते घड़े हो..में तुम  को दीर्घ माना गया है ...मैंने अपनी जिज्ञासा वश यह प्रश्न किया है अन्यथा न लीगियेगा सादर प्रणाम केसाथ  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2014 at 12:16pm

आदरणीया राजेश जी 

उड़ाया जिसे ठोकरों से हटाया

उसी ख़ाक के तुम छलकते घड़े हो.................वाह! बहुत गहरी बात कहता शेर हुआ है 

जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले

निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो  ..............शानदार शेर 

इस बेमिसाल कहन के लिए दिल से ढेर सारी बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:16am

//जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले
निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो //

क्या कहने हैं आ० राजेश कुमारी जी, वाह।

Comment by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 10:27am

जमाना नया है नयी नस्ल आई

पुराने चलन पर अभी तक अड़े हो

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 8:35am

आ० गिरिराज जी,आपकी प्रतिक्रिया सदैव ही मेरा उत्साह वर्धन करती रही है आपको ग़ज़ल पसंद आई मानो मुझे पारितोषिक मिल गया ,दिल से आभारी हूँ .सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 8:34am

सोमेश कुमार जी,ग़ज़ल की गहराई तक पँहुच कर विश्लेषण का तहे दिल से शुक्रिया आपको अशआर पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ,  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 8:32am

जितेन्द्र गीत भैया ,आपका दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 8:31am

शिज्जू भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई तहे दिल से आभार आपका 

कृपया ध्यान दे...

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