नैन कटीले …
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
शृंगार रस में पगी रचना ..वाह ..बधाई आपको
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना के पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति ने रचना को जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय arun kumar nigam जी रचना के पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति ने रचना को जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार।
बहुत सुंदर रचना, बधाई आदरणीय शुशील जी
सुन्दर है सरना जी
भाव पूर्ण , मधुर i सौरभ जी हमेशा परफेक्शन चाहते है i इसीलिये वे प्रायः कटु आलोचक नजर आते है i पर वे जो कहते है वह हम लेखको का मार्गदर्शन करता है i इस सत्य में संदेह नहीं है i सादर i
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