"रमा, सेठ रामलाल की बेटी पिछले महीने किसी के साथ भाग गई थी। कई दिन अखबारों की न्यूज भी बनी। आज उस बात को सब भूल गए हैं। रामलाल भी आराम से अपना धंधा कर रहा है और एक मेरी बेटी ने 5 साल पहले भागकर शादी की थी। आज भी लोग मेरी बेटी और मेरे परिवार को गिरी हुई नजरों से देखते हैं।"- सावित्री ने दुखी मन से कहा।
"सावित्री बहन, गरीब की बेटी और अमीर की बेटी में बहुत फर्क होता है।"- रमा ने सांत्वना देते हुए कहा।
"मौलिक और अप्रकाशित"
Comment
somesh ji, rajesh kumari ji, dr. gopal ji, giriraj ji, yograj ji or laxman ji sabhi aadrniya mahanubhao ka dil se aabhar vyakt karta hu. ye OBO me meri pahli rachna hai. aap logon ka hissa bankar muje khushi or garav mahsoos ho raha hai.
सुंदर कहानी रची है | एक दूसरा पहलु भी है - चाहे अमीर गरीब ही कारण हो, पर गरीब के बेटी किसी वजह से याद तो करते
है | अमीर की बेटी तो आँखों से ओझल ही हो गई | हार्दिक बधाई श्री खनगवाल जी
अमीर गरीब के फर्क को सुंदरता से परिभाषित किया है भाई विनोद खनगवाल जी, बधाई स्वीकारें।
पैसा बहुत से ऐब ढक देता , कम से कम हमारे देश मे तो यही हो रहा है ! बधाई लघुकथा के लिये , आदरणीय ।
सत्य है मित्र i
को कही सके बडेन को -----
बातें तो बनती हैं चाहे बेटी अमीर की हो या गरीब की किन्तु जो कुछ फ़र्क है सोमेश जी की बात से मैं भी सहमत हूँ ,कई बार अपने लोग ही उस जख्म को ताजा किये रहते हैं ..अच्छी लघु कथा बहुत बहुत बधाई
शायद ये फ़र्क इसलिए भी है की अमीर का दूसरों की ज़िन्दगी में कम दखल है जबकि गरीब अधिक घुले-मिले हैं इसलिए जख्म को कुरेदने वाले भी ज़्यादा हैं
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