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नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक
वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका था जो तुमने
तुम्हारा आईना दिल का अगर टूटा तो क्या होगा
बरी हो तुम भले ही आज अपने इन गुनाहों से
अदालत से ख़ुदा की फेंसला आया तो क्या होगा
बहुत बर्दाश्त करता है न कहता कुछ जुबाँ से वो
शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
वाह वाह वाह !! मोती जड़ दिए अश'आर में मा० राजेश कुमारी जी। शेअर मुकम्मिल और दिल में उतरने की कैफियत का हुआ है। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए।
आदरणीया राजेश जी , बहुत बेहतरीन ग़ज़्ल कही है ! हर शे र अपना जवाब खुद है , वाह ! दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
सुंदर गज़ल के लिए बधाई ,दीदी
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