मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है
**************************************
1222 1222 1222 122
न आये होश अब यारों नशा छाया हुआ है
सँभल ऐ बज़्म दिल अब वज़्द में आया हुआ है
ज़रा राहत की कुछ सांसें तो लेलूँ मैं ,कि सदियों
बबूलों को मनाया हूँ तो अब साया हुआ है
हथौड़ा एक तुम भी मार दो लोहा गरम पर
यहाँ मज़हब को ले के खून गरमाया हुआ है
अँधेरा बांट के भी रोशनी का मुंतज़िम , वो
तुम्हें किसने कहा, ग़मगीन, शर्माया हुआ है ?
सुना है आइनों की बस्ती में फिर कोई पत्थर
वहाँ की तेवरी से खूब घबराया हुआ है
कि अब सरकश तराने का कोई आगाज़ भी हो
मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है
मुझे बज़्मे तरब की रोशनी में मत घसीटो
मेरे अन्दर का सन्नाटा मुझे भाया हुआ है
********************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर मतला ..क्या कहने
हथौड़ा एक तुम भी मार दो लोहा गरम पर-----हथौड़ा एक तुम भी मार दो है गर्म लोहा ---करें तो कैसा रहे ?
सुना है आइनों की बस्ती में फिर कोई पत्थर
वहाँ की तेवरी से खूब घबराया हुआ है---वाह वाह
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी दाद कबूलें
आदरनीय श्याम भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार !
आदरणीय योगराज भाई , विस्तार से गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ के आनन्द हुआ ! आपकी सलाह उचित है ,मै सुधार कर लूंगा , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया ! आपका दिली शुक्रिया !
आ, बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको |
//न आये होश अब यारों नशा छाया हुआ है
सँभल ऐ बज़्म दिल अब वज़्द में आया हुआ है// बहुत ही प्यारा मतला।
//ज़रा राहत की कुछ सांसें तो लेलूँ मैं ,कि सदियों
बबूलों को मनाया हूँ तो अब साया हुआ है // "बबूलों को मनाया हूँ " भाषाई दृष्टि से दुरुस्त नहीं है, "हूँ" को "हां" कर ले।
//हथौड़ा एक तुम भी मार दो लोहा गरम पर
यहाँ मज़हब को ले के खून गरमाया हुआ है// बहुत खूब.
//अँधेरा बांट के भी रोशनी का मुंतज़िम , वो
तुम्हें किसने कहा, ग़मगीन, शर्माया हुआ है ?// लाजवाब शेअर।
//सुना है आइनों की बस्ती में फिर कोई पत्थर
वहाँ की तेवरी से खूब घबराया हुआ है // क्या कहने है - बढ़िया शेअर हुआ है।
//कि अब सरकश तराने का कोई आगाज़ भी हो
मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है // वाह वाह वाह - बहुत खूबसूरत शेअर।
//मुझे बज़्मे तरब की रोशनी में मत घसीटो
मेरे अन्दर का सन्नाटा मुझे भाया हुआ है // बहुत खूब।
सुभान अल्लाह ! क्या उम्दा गजलगोई है i एक एक अशआर मोती के मानिंद है i बधाई अनुज i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online