For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नये युग का प्रेम

स्त्री को चाह होने लगी स्त्री की

पुरुष कर रहा पुरुष से प्यार

कैसे तो ये संभव है

और कैसे हो जाता इकरार||

 

स्वभाविक सी अभिव्यक्ति है ?

या सामाजिक वर्जनाओं को तिरस्कृति है?

ईश्वर का तो नही रहा होगा ऐसा कोई अभिप्राय

प्यार के नये नये रूप देते दिल हिलाए||

 

स्त्री और पुरुष का अनमोल अनूठा जोड़

सृष्टि टिकी है इस रिश्ते पर कैसे कोई सकता तोड़

वासनाओं के दिख रहे नित नए ही रूप

इश्क हो रहा शर्मिंदा प्यार दिख रहा कुरूप||

 

सृष्टि की रचना, करते नर और नारी

स्नेह उनका पड जाता जग पर हरदम भारी

अस्वाभाविक रिश्ते कुछ पल के मेहमान

जैसे आ जाता दूध में उफान||

 

युगों युगों तक अमर रहता नर नारी का प्यार

देता सन्देश जीवन का करता सृष्टि का सत्कार ||

 

 सरिता पन्थी "मौलिक व अप्रकाशित "

Views: 430

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2014 at 12:25pm

आदरणीय वर्तमान के बदलते परिद्रिश्य् को दर्शाती और शास्वत प्रेम की सार्थकता को स्थापित करती इस शानदार रचना के लिए तहे दी बधाई सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:49am

विचारणीय विषय ,सुन्दर रचना ,बधाई आपको!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2014 at 4:41pm

सार्थक  अभिव्यक्ति  हुई है | चिंतन परक रचना  के  लिए  बधाई  

Comment by somesh kumar on November 24, 2014 at 9:02pm

जो लोग इस प्रकार के प्रेम में हैं उनके अपने तर्क अपनी भावनाएं हैं ,संत-महंत की तरह दुसरे की पसंद को अस्वीकारना ईश्वर की उस रचना को थोड़ा जानकर बहुत बघारने जैसा है ,जब डाक्टर और वैज्ञानिक भी प्रेम के ईस स्वरूप को नैसर्गिक मानते हैं तो ऐसे में हमें भी इन लोगों को स्वीकारना चाहिए |वैसे भी 

ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन 

जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन 

सुंदर रचना के लिए बधाई परंतु विनम्रता-पूर्वक आपके विचारों से असहमत

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:28pm

पंथी जी

नवीनता के आग्रही प्रकृति से करते है खिलवाड़

क्यों नहीं नाक से खाते वे कान से बोलते -----

Comment by Meena Pathak on November 24, 2014 at 1:59pm

सृष्टि की रचना, करते नर और नारी स्नेह उनका पड जाता जग पर हरदम भारी अस्वाभाविक रिश्ते कुछ पल के मेहमान जैसे आ जाता दूध में उफान||.....................सुन्दर रचना  ,,गम्भीर विषय 

Comment by shree suneel on November 24, 2014 at 12:22pm
Gambhir mudde pe roushni daali aapne. achchhi prastuti..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shabla Arora is now a member of Open Books Online
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रदत्त विषयानुसार मैंने युद्ध की अपेक्षा शान्ति को वरीयता दी है. युद्ध…"
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"   आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, नाश सृष्टि का इस करना/ इस सृष्टि का नाश करना/...गेयता के लिए…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"  आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना को प्रदत्त विषयानुरूप पाने के लिए आपका…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"क्या ही कथ्य, क्या ही तथ्य और क्या ही प्रवाह .. वाह वाह वाह ..  आदरणीय अशोक भाईजी, आपने…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"युद्ध की विभीषिका की चेतावनी देती उत्तम रचना हुई आ॰ अशोक जी। सभी भाव पसंद आए।"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय। परिवर्तित मतला और शेर भी बहुत प्रभावी बन पड़ा है। मंच को लाभान्वित करने…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"अच्छे दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई। सार्थक और विषयानुकूल। बहुत बढ़िया "
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service