स्त्री को चाह होने लगी स्त्री की
पुरुष कर रहा पुरुष से प्यार
कैसे तो ये संभव है
और कैसे हो जाता इकरार||
स्वभाविक सी अभिव्यक्ति है ?
या सामाजिक वर्जनाओं को तिरस्कृति है?
ईश्वर का तो नही रहा होगा ऐसा कोई अभिप्राय
प्यार के नये नये रूप देते दिल हिलाए||
स्त्री और पुरुष का अनमोल अनूठा जोड़
सृष्टि टिकी है इस रिश्ते पर कैसे कोई सकता तोड़
वासनाओं के दिख रहे नित नए ही रूप
इश्क हो रहा शर्मिंदा प्यार दिख रहा कुरूप||
सृष्टि की रचना, करते नर और नारी
स्नेह उनका पड जाता जग पर हरदम भारी
अस्वाभाविक रिश्ते कुछ पल के मेहमान
जैसे आ जाता दूध में उफान||
युगों युगों तक अमर रहता नर नारी का प्यार
देता सन्देश जीवन का करता सृष्टि का सत्कार ||
सरिता पन्थी "मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
आदरणीय वर्तमान के बदलते परिद्रिश्य् को दर्शाती और शास्वत प्रेम की सार्थकता को स्थापित करती इस शानदार रचना के लिए तहे दी बधाई सादर
विचारणीय विषय ,सुन्दर रचना ,बधाई आपको!
सार्थक अभिव्यक्ति हुई है | चिंतन परक रचना के लिए बधाई
जो लोग इस प्रकार के प्रेम में हैं उनके अपने तर्क अपनी भावनाएं हैं ,संत-महंत की तरह दुसरे की पसंद को अस्वीकारना ईश्वर की उस रचना को थोड़ा जानकर बहुत बघारने जैसा है ,जब डाक्टर और वैज्ञानिक भी प्रेम के ईस स्वरूप को नैसर्गिक मानते हैं तो ऐसे में हमें भी इन लोगों को स्वीकारना चाहिए |वैसे भी
ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
सुंदर रचना के लिए बधाई परंतु विनम्रता-पूर्वक आपके विचारों से असहमत
पंथी जी
नवीनता के आग्रही प्रकृति से करते है खिलवाड़
क्यों नहीं नाक से खाते वे कान से बोलते -----
सृष्टि की रचना, करते नर और नारी स्नेह उनका पड जाता जग पर हरदम भारी अस्वाभाविक रिश्ते कुछ पल के मेहमान जैसे आ जाता दूध में उफान||.....................सुन्दर रचना ,,गम्भीर विषय
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