२२ २२ २२ २२
फेलुन - फेलुन - फेलुन - फेलुन
तनहा तनहा ही रहना है !
दर्द सभी अपने सहना है !!
रहता वो अपने मैं गुमसुम !
शांत नदी जैसे बहना है !!
उसको साथ मिला अपनों का !
अब उसको क्या कुछ कहना है
वो है नेता का साला तो !
क्या अब उसको भी सहना है !!
घर से जाते तुमने देखा !
कहिये उसने क्या पहना है !!
लड़का उसका बिगड़ा है तो !
घर फिर तो इसका ढहना है !!
"मौलिक और अप्रकाशित "
** आलोक **
मथुरा
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर जी आपका दिल से आभार
आदरणीय ram shiromani pathak जी...आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी...आपका बहुत बहुत शुक्रिया हौसला बढ़ाने के लिए !
आदरणीय somesh kumar जी दिल से आपका शुक्रिया
आदरणीय Shyam Narain Verma जी...आपका बहुत बहुत आभार
आ. आलोक भाई , बढिया गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय बहुत सुन्दर प्रस्तुति //बधाई आपको
सुन्दर ग़ज़ल, अंतिम शेर पर विशेष दाद, दूसरे शेर के मिसरा उला में (मैं) टाइपिंग मिस्टेक लगता है।
सुंदर रचना ,तीसरा और अंतिम से'र पर विशेष बधाई
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