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लघुकथा में निहित भाव सुन्दर हैं, लेकिन प्रस्तुति अभी काफी कमज़ोर है प्रिय पूजा यादव जी।
//"आखिर इस दृश्य मेँ वह आनन्द कहाँ था?"
खैर, बला टली। //
बात कहने की यह शैली लघुकथा को ढीला बना रही है। सतत प्रयास और अभ्यास से लेखनी में निखार आएगा।
sabhi aadarneey paathakjano ka saadar aabhaar..meri rachna par aap sabhi ki upasthiti ke liye dil se aabhaari hu
ji aadarneey gopal shreevastv ji.............aapke maargdarshan ke liye hraday se aabhaari hu...........saadar aabhaar
आ. पूजा जी वर्तमान की ज्वलंत समस्या सुन्दर रचना हुई है , बधाइयाँ ।
पूजा जी
इन्सानियत धर्म नहीं है I इंसानियत धर्म का अंग है i इसलिए वह धर्म से ऊपर नहीं है i आपकी पंच लाइन हिन्दू मुसलिम की बात करती है इंसानियत की नहीं I शीर्षक कथा का केन्द्रीय भाव होना चाहिए i इससे अधिक संक्षेप में इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता i आप स्वयं समझदार हैं I
सोमेश जी ने ठीक कहा शीर्षक कथा के साथ न्याय नहीं करता i कथा की अन्तिम पंक्ति ही पंच लाइन है I
कहानी का अंत शीर्षक से जुड़ता नहीं लग रहा |शायद शीर्षक बदलना चाहिए |इन्सान का धर्म ,सच्चा धर्म या सिर्फ धर्म ज्यादा मेल खाते हैं ,पर क्युकी कहानी इसी शीर्षक के साथ स्वीकार की गया है तो हो सकता है मेरा नजरिया अलग हो,बरहाल सुंदर प्रयास के लिए बधाई
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