सुन्दर शय्या
अधमुँदी सी आँखे
एक लम्बी सांस
एकांत वास
सोच के तार
अतीत मे जा
जिंदगी की किताब
खोली जो इक बार
पन्ना- दर- पन्ना
धोखा, छल, आघात
कभी भावुकता तो
कभी अज्ञानता
भरे निर्णय,
कभी विवशता
रिश्ते निभाने की
तो कभी मजबूरी
सामाजिकता की,
जीवन की लम्बी डगर
पग-पग अवरोध,
बावजूद, बढ़ती गई वो
कदम-कदम
लड़खड़ाती,संभलती
तपन दिनकर की सहती,
चढती गई
हर चढाई
मिले जो वादे
जीवन मे
सब हारी
छला सबने
बारी - बारी
अब शाम जीवन की
ढलने को आई
थकन से चूर
जख्मों से आहत
जीने को मजबूर |
अचानक,
एक आह !!
बंद जीवन की किताब
खुली आँखें
माथे पर लकीरें
स्याह अन्धेरा
भारी पलकें
घनी काली रात
शून्य को प्रस्थान
विश्राम,विश्राम,विश्राम ||
**
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
you have written so nice poem . it is really heart touching.
आदरणीया मीना जी , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! हार्दिक बधाई ।
सुन्दर अभिव्यक्ति आ० मीना पाठक जी.
सुन्दर अभिव्यक्ति आ० मीना पाठक जी, सोच के समंदर में हिचकोले खाने के बाद निद्रा देवी की गोद में आश्रय ले लेना वाक़ई करिश्माई होता है।
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