For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं कमाल है

 

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है

 

प्यार मर्ज़ दिल का दर्द है फ़कत  

वो दवा समझते हैं कमाल है

 

इश्क या मुहब्बत को मैं इक फितूर  

वो ख़ुदा समझते हैं कमाल है

-------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 947

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 12:06pm

आ० विजय मिश्र जी,इस उत्साह वर्धन हेतु तहे दिल से आभार आपका | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:50am

आ० गिरिराज जी .आप जैसा ग़ज़लकार जब पाठक हो तो ग़ज़ल मुस्कुरा उठती है आपको ग़ज़ल पसंद आई ग़ज़ल मुकम्मल हो गई |आदरणीय --आपका मशविरा --चूड़ियाँ बजें   को  चूड़ियाँ बजीं  करना शायद सही हो ? दूसरे अर्थ में सही होता किन्तु यहाँ काल दोष पैदा हो जाएगा क्यूंकि सानी में आज की या रोज मर्रा की बात हो रही है उसी को ध्यान में रखते हुए बजें अर्थात (अक्सर बजा करती हैं आदत से )भाव लिया है --यदि बजी करती तो नीचे सानी में समझे होना चाहिए था जो नहीं हो सकता ,आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर पाई |बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय |

Comment by विजय मिश्र on December 16, 2014 at 11:46am
आ० राजेशजी !
क्या खूब लीक्खी हैं एक -एक
आता बेमिसाल है ........ |

बारम्बार बधाई एवं साधुवाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2014 at 9:55am

आदरणीया राजेश जी , एक और बढ़िया ग़ज़ल के लिये दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

चूड़ियाँ बजें   को  चूड़ियाँ बजीं  करना शायद सही हो ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2014 at 8:03pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई,शेर अपनी बात कह पाए आप सुन पाए  एक लेखक को और क्या चाहिए,मेरा लेखन कर्म सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका सादर .   

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 15, 2014 at 7:56pm
है क्या ,
क्या वो समझते हैं ,
कमाल है ।
हाँ को न, न को हाँ ,
समझते हैं , कमाल है ॥
समझ ही तो है जो क्या को क्या बना देती है।
होता जो है , उसे कुछ का कुछ बना देती है ॥
बहुत ही मन भावक , बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2014 at 7:29pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया के सम्मुख नत हूँ दिल की गहराई से धन्यवाद प्रेषित है आदरणीय मेरा लिखना सार्थक हुआ | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 3:19pm

महनीया

क्या कमाल की गजल कही  है

हम भी यही कहते है,कमाल है

राजेश कुमारी जी की फितरत

को सभी जानते है कमाल है

पहले भी बहुत बाकमाल देखा

जिसने भी पढा बोला कमाल है

और कितने मोती  है खजाने में

किसी को पता नहीं कमाल है

अभी क्या देखा और क्या पढा

है जो अब आने वाला कमाल है ---------- सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2014 at 12:18pm

मिथिलेश जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 14, 2014 at 12:06pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
बेहतरीन शेर
इश्क़ या मुहब्बत को मैं इक फितूर
वो ख़ुदा समझते है कमाल है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service