मत लिखना आने की बात
मत लिखना आने की बात
आने से पहले
जो ना आए, नियत वक्त पे
झल्लाएगा मन
उठेंगे सौ-सौ प्रश्न
तुम्हारे बारे में
लपटें उठ जाएंगी
राख ढके अंगारे में
अच्छा है बिन बतलाए आओ
बिना कोई उम्मीद जगाए
आ जाओ जो ऐसे एक दिन
दिल होली, दिवाली, ईद मनाए |
सोमेश कुमार(08/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
भाई गणेशजी, नये हस्ताक्षर को सटीक सुझाव और सलाह के लिए साधुवाद..
आपका संशोधन वस्तुतः नये रचनाकार केलिए मार्गदर्शक होना चाहिये. किन्तु, इन्हें सर्वप्रथम सुग्राही बनना होगा. संवेदना प्रस्तुति की पंक्तियों से ही नहीं, प्रस्तुति के आचरण से भी अभिव्यक्त होनी चाहिये.
वैसे अतुकान्त कविताओं की एक और शैली ऐसे भी हो सकती है, जिनके कारण अतुकान्त रचनाएँ साहित्यांगन में इस तरीके प्रभावी हो गयी हैं -
आने से पहले न लिखना आने की बात
जो न आए नियत वक्त पर
मन झल्लाएगा !
सौ प्रश्न कौंधेंगे
लपटें उठेंगी राख ढके अंगारों से.
अच्छा है, आ जाओ बिन बतलाए / ऐसे ही एक दिन
बिना कोई उम्मीद जगाए
उस दिन..
होली, दिवाली, ईद
साथ मनायेंगे.. .
सोमेश जी, इस प्रयास पर मैं बधाई देता हूँ, कविता के तत्व मौजूद हैं हां कसावट की कमी जरुर है जो धीरे धीरे ही सधेगा, होता क्या है कि जो चीजे हमारी नज़रों से नहीं पकड़ में आती उसे पाठक पकड़ लेते हैं .
एक बानगी देखिये .....इसी कविता को यदि मैं लिखता .....
आने से पहले
आने की बात...
मत लिखना
गर न आए नियत वक्त पे
झल्लाएगा मन
कौंधेंगे सौ प्रश्न
उठेंगी लपटें
राख ढके अंगारों से
अच्छा है
आ जाओ
बिन बतलाए
बिन कोई
उम्मीद जगाए
बस आ जाओ
ऐसे ही
एक दिन
होली, दिवाली, ईद
साथ मनायेंगे
उस दिन |
***
इस रचना के आलोक में बात की जाय तो आपके रचनाप्रयास में यथोचित संभवना दिखायी देती है जिसे आप अपने दीर्घकालिक सतत प्रयासों से दिशायुक्त कर सकते हैं. भाई सोमेशजी, आगे यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने लेखन की नैसर्गिक प्रवृति के प्रति कितने गंभीर हैं.
हार्दिक शुभेच्छाएँ और बधाइयाँ
sukriya archna ji evm bhai mithlesh ji
मत लिखना आने की बात............ बधाई
शुक्रिया ,तीनों अजीज बंधुओं का
वाह अच्छी कविता है भाई जी
सोमेश भाई ....
अच्छा है बिन बतलाए आओ
बिना कोई उम्मीद जगाए......शानदार ,हार्दिक बधाई !
सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई। |
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