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अन्धकार भी आज उदास है

भरी हुई मधुशालायें सारी

पीकर  सारे मस्त पड़ें हैं ,

मदिरालय पर लोगों का जमघट

अब मंदिर पर बंध जड़ें  हैं ,

मिटे दुःख दर्द गरीबी सारी

आया नव वर्ष उल्लास है ,

सुन्दर गति,सुन्दर मति सारी

अन्धकार भी आज उदास है ,

प्रकृति रंग बदल रही प्रतिपल

धन-धान्य का फैला प्रभाव है,

अभाव दिखता नहीं कहीं पर

दिखता समृधि का प्रभाव है ,

अतीत की पीड़ा सब विस्मृत

अब नए धुन की तलाश है,

अमृत बरस रहा गगन  से

आवृत  सारा  पराकाश  है ,

नवसर्जन की तलाश हो रही

लगता होने वाला विकास है ,

ख़त्म हो रहे अधर्म-वधर्म सब

संस्कृति कहती यही विकास है ,

नव आशाओं के दीप जल रहे

सुन्दर –सुन्दर सा विहान है ,

आनंदपूर्ण जियेगें अब सब

आया नव वर्ष, उल्लास है !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 1:48pm

नए  वर्ष  में  नए हर्ष  में

        सुधियों  का  मकरंद i  

जीवन का परिमल बन जाए

        महकाए  हर   छंद i

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 12:50pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया  एवं बधाई हेतु आपका धन्यवाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:18am

 नववर्ष का स्वागत इस बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुति से.... बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी, सादर.....

Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 9:38pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker सर   आप जैसे वरिष्ठ रचनाकार का आशीष प्राप्त हुआ, यह मेरे लिए गर्व की बात है। आपका हार्दिक आभार !!

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 9:31pm
शुभकामनाओं से नववर्ष का स्वागत ,सुन्दर प्रस्तुति , बहुत बहुत बधाई, हरी प्रकाश दुबे जी , सादर।

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