फटी भींट में चौखट ठोकी,
खोली नयी किवरिया.
चश्मा जूना फ्रेम नया है,
ये है नया नजरिया.
गंगा में स्नान सबेरे,
दान पूण्य कर देंगे.
रात क्लब में डिस्को धुन पर,
अधनंगे थिरकेंगे.
देशी पी अंग्रेजी बोलीं,
मैडम बनीं गुजरिया.
अपने नीड़ों से गायब हैं,
फड़की सोन चिरैया.
ताल विदेशी में नाचेंगी,
रजनी और रुकैया.
घूंघट गया ओढनी गायब,
उड़ती जाए चुनरिया.
चूल्हा चक्की कौन करे अब,
डिब्बे में भोजन है.
बहू कमाती नकद रोकडा.
पैसे का पूजन है.
गाँव हमारे गायब होते,
लन्दन बनी नगरिया.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
चूल्हा चक्की कौन करे अब,
डिब्बे में भोजन है.
बहू कमाती नकद रोकडा.
पैसे का पूजन है.
गाँव हमारे गायब होते,
लन्दन बनी नगरिया.
वाह आदरणीय वर्तमान परिपेक्ष्य में सार्थक और सटीक भावों से सुसज्जित इस नवगीत की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
अपने नीड़ों से गायब हैं,
फड़की सोन चिरैया.
ताल विदेशी में नाचेंगी,
रजनी और रुकैया.
घूंघट गया ओढनी गायब,
उड़ती जाए चुनरिया.
आदरणीय हरिवल्लभ साहब देशज शब्दों के प्रयोग ने रचना को अलग ही निखर प्रदान किया है |सादर अभिनन्दन
वाह,सर जी मोरा मन -मन नाचे लाग्ल ,देशी शब्दों के प्रयोग से सुंदर प्रस्तुति दी आपने
आदरणीय हरिभाईजी, आपकी प्रस्तुति पर मंत्र मुग्ध हूँ ! विश्वास और सकर्मक ऊर्जा ऐसे ही कलम साध कर लिखवाती है. एक सार्थक, संयत तथा श्लाघनीय नवगीत से आनन्दित करने के लिए मैं आपको बार-बार बधाइयाँ और शुभकामनाएँ दे रहा हूँ.
’तनिक तीतर, तनिक बटेर’ हुए जी रहे समाज पर आपने जैसी और जिस तरह से कलम चलायी है वह आपकी न केवल संवेदना, बल्कि एक सचेत कवि की जागरुकता से भी परिचय करा रही है. साधुवाद आदरणीय !
यह अवश्य है कि नवगीत विधा निरर्थक परम्पराओं का हामी कत्तई नहीं है किन्तु तेजी से बदलते परिवेश में कई सार्थक परम्पराओं के छूटते चले जाने को जिस शिद्दत से नवगीतों में अभिव्यक्ति मिला करती है, वैसी अभिव्यक्ति अन्य काव्य-विधाओं में अक्सर नहीं मिलता. या उसके लिए सायास प्रयास करना पड़ता है.
एक-एक बन्द नहीं बल्कि समुच्चय में यह नवगीत अनुमन्य है.
शुभ-शुभ
आदरणीय शिज्जू "शकूर " साहब आपने रचना पर स्नेहिल टीप देकर हौसला बढाया ..आपका दिली शुक्रगुजार हूँ...सादर.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपने श्रम साध्य सुन्दर मीमांसा कर रचना को गौरवान्वित किया ,आपकी उत्साह्वार्धित करती टिप्पणी हेतु ह्रदय से आभार...सादर.
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी सराहनीय टीप से उत्साहित हूँ...हार्दिक आभार आपका...कृपया स्नेह बनाये रखें.
आदरणीय डॉ.गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी संस्तुति से काव्य में रस भर गया...हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय Shyam Narain Verma साहब हार्दिक आभार आपका अनुग्रह रचना पर प्राप्त हुआ ..कृपया स्नेह बनाये रखें.
वाह आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपके नवगीत तो हमेशा ही अच्छे होते हैं इस दफे तो रचना कमाल बन पड़ी है। आधुनिक नववर्ष का आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है, बहुत बहुत बधाई।
सादर
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