अपने वज़ूद की ख़बर इस तरह हम देते हैं
मुट्ठी में रेत उठाकर हम हवा में उड़ा देते हैं
क्या हुआ जो इस उम्र में हम बे-समर हो गए
ये शज़र आज भी गुज़री बहारों की हवा देते हैं
अब हंसी भी लबों पे पैबंद सी नज़र आती हैं
जाने लोग आँखों में कैसे नमी को छुपा लेते हैं
रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी
हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं
जागते रहे तमाम शब् हम उसके इंतज़ार में
बार बार चरागों को हम जलने की सज़ा देते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय vijay nikore जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुन्दर रचना है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार ।
आदरणीय सोमेश कुमार जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार ।
आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना को आपने सराहा मेरे सृजन को मान दिया उसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी आपके स्पष्टीकरण ने मेरी सृजनशीलता को जो मान दिया है उसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ। कृपया भविष्य में अपने अनुजों का ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें। बाकी हाँ मैं गीतिका छंद और ग़ज़ल को उसके नियमों के अनुसार लिखने का अवशय प्रयत्न करूंगा और इस दिशा में आप जैसे अग्रजों का सहयोग चाहूंगा। धन्यवाद।
आदरणीय सुशील भाई , बढिया रचना हुई है , आपको दिली बधाइयाँ ।
जो कुछ भी है सुंदर है और भावपूर्ण है और मैं भी अभी" फ्री वर्स " में ही दिलो-शुकून पता हूँ |
आदरणीय सुशील सर आपकी रचनाओं में प्रवाह तो रहता है भाव भी दिलकश होते हैं, इस रचना के लिये सादर बधाई, आपके और आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर के बीच कुछ अच्छी चर्चा हुई है।
आदरनीय सरना जी
हिन्दी कीछंद विधा के अतिरिक्त भी कोई गीतिका है इसका ज्ञान मुझे नहीं था i इस गीतिका का मीटर तो आपने दिया है पर इसका परिचय कहा उपलब्ध है ? मेरी जानकारी के लिये बताएं i फ्री वर्स वही है जिसे आप स्वतंत्र लेखन कह रहे है उसमे कवि का अपना मीटर चलता है i आप अपनी कविता के प्रति आश्वस्त रहे उसमे कोई कमी नहीं है i सादर i
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