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फूल नहीं तो पत्थर कह दो

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।
दो बातें पर हंसकर कह दो ।।

आज मुकम्मल कर दो ऐसे ।
एक दफे बस दिलबर कह दो ।।

साथ चलूँगा मरते दम तक।
मुझको अपना रहबर कह दो।।

माँ बाबा की बात सुने सब।
ऐसा सपनों में घर कह दो ।।

ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी तो बेहतर  कह दो।।

सदियों तक सुनने में आये। 
एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो।।
*******************
राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Anurag Prateek on December 26, 2014 at 9:33pm

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।

इतना भी तो हंसकर कह दो ।।-- बहुत सुन्दर भाव

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 5:25pm

बहुत बहुत बधाई आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी बाकी मिथिलेश जी ने बहुत सुन्दर सुझाव दिया है !

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 12:23pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी आपसे सहमत हूँ।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 12:22pm
आदरणीय विजय जी बहुत आभार आपका।।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 11:53am

वामनकर जी ने जो सम्पादन किया उससे आपको काफी सीख मिली होगी i  भाव तो आपके पास है बस सही शब्दों में ढालना ही शिल्प है i  सस्नेह i

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2014 at 11:41am
बहुत सुन्दर भाव, यह पंक्तियाँ तो बहुत दिनों तक याद रहेंगीं ,
सदियों तक सुनने में आये।
एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो।।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी.
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 9:27am
आदरणीय भाई मिथिलेश जी आपके इस अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन के लिए सदैव आभारी रहूँगा।।बहुत बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 9:25am
उत्साह वर्धन हेतु बहुत आभार भाई सोमेस जी।।।।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 2:41am

अच्छी भावाभिव्यक्ति ..... बस इसे ग़ज़ल बनाने के लिए यदि उचित लगे तो 22-22-22-22 बहर में कह सकते है .. सादर 

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।  ...........................फूल नहीं तो पत्थर कह दो
चलो ये बात हँसकर कह दो।।............................  दो बातें पर हंसकर कह दो 

मुझे भी मुकम्मल करिये अब।.........................आज मुकम्मल कर दो ऐसे 
इक बार सही दिलबर कह दो।।......................... एक दफे बस दिलबर कह दो 

साथ रहूँगा मरते दम तक।............................. साथ चलूँगा मरते दम तक
मुझको अपना रहबर कह दो।......................... मुझको अपना रहबर कह दो

माँ बाबा का आज्ञाकारी।। ............................. माँ बाबा की बात सुने सब 
ऐसे घर को भी घर कह दो।।.........................  ऐसा सपनों में घर कह दो 

ऊँच नीच सम भाव रहा जो। ........................ ऊँच नीच सम भाव रहा जो
उसको भी एक नज़र कह दो।।........................ उसको भी तो बेहतर  कह दो

सदियों तक सुनने में आये। ........................... सदियों तक सुनने में आये
ऐसी इक ग़ज़ल अमर कह दो।।....................... एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो 

Comment by somesh kumar on December 25, 2014 at 11:21pm

माँ बाबा का आज्ञाकारी।।
ऐसे घर को भी घर कह दो।।

ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी एक नज़र कह दो।।

ये लाइने आपकी इस रचना के प्राण लगें और असर भी करती हैं ,प्रयास के लिए बधाई 

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