For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल नहीं तो पत्थर कह दो

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।
दो बातें पर हंसकर कह दो ।।

आज मुकम्मल कर दो ऐसे ।
एक दफे बस दिलबर कह दो ।।

साथ चलूँगा मरते दम तक।
मुझको अपना रहबर कह दो।।

माँ बाबा की बात सुने सब।
ऐसा सपनों में घर कह दो ।।

ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी तो बेहतर  कह दो।।

सदियों तक सुनने में आये। 
एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो।।
*******************
राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Prateek on December 26, 2014 at 9:33pm

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।

इतना भी तो हंसकर कह दो ।।-- बहुत सुन्दर भाव

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 5:25pm

बहुत बहुत बधाई आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी बाकी मिथिलेश जी ने बहुत सुन्दर सुझाव दिया है !

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 12:23pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी आपसे सहमत हूँ।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 12:22pm
आदरणीय विजय जी बहुत आभार आपका।।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 11:53am

वामनकर जी ने जो सम्पादन किया उससे आपको काफी सीख मिली होगी i  भाव तो आपके पास है बस सही शब्दों में ढालना ही शिल्प है i  सस्नेह i

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2014 at 11:41am
बहुत सुन्दर भाव, यह पंक्तियाँ तो बहुत दिनों तक याद रहेंगीं ,
सदियों तक सुनने में आये।
एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो।।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी.
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 9:27am
आदरणीय भाई मिथिलेश जी आपके इस अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन के लिए सदैव आभारी रहूँगा।।बहुत बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 9:25am
उत्साह वर्धन हेतु बहुत आभार भाई सोमेस जी।।।।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 2:41am

अच्छी भावाभिव्यक्ति ..... बस इसे ग़ज़ल बनाने के लिए यदि उचित लगे तो 22-22-22-22 बहर में कह सकते है .. सादर 

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।  ...........................फूल नहीं तो पत्थर कह दो
चलो ये बात हँसकर कह दो।।............................  दो बातें पर हंसकर कह दो 

मुझे भी मुकम्मल करिये अब।.........................आज मुकम्मल कर दो ऐसे 
इक बार सही दिलबर कह दो।।......................... एक दफे बस दिलबर कह दो 

साथ रहूँगा मरते दम तक।............................. साथ चलूँगा मरते दम तक
मुझको अपना रहबर कह दो।......................... मुझको अपना रहबर कह दो

माँ बाबा का आज्ञाकारी।। ............................. माँ बाबा की बात सुने सब 
ऐसे घर को भी घर कह दो।।.........................  ऐसा सपनों में घर कह दो 

ऊँच नीच सम भाव रहा जो। ........................ ऊँच नीच सम भाव रहा जो
उसको भी एक नज़र कह दो।।........................ उसको भी तो बेहतर  कह दो

सदियों तक सुनने में आये। ........................... सदियों तक सुनने में आये
ऐसी इक ग़ज़ल अमर कह दो।।....................... एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो 

Comment by somesh kumar on December 25, 2014 at 11:21pm

माँ बाबा का आज्ञाकारी।।
ऐसे घर को भी घर कह दो।।

ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी एक नज़र कह दो।।

ये लाइने आपकी इस रचना के प्राण लगें और असर भी करती हैं ,प्रयास के लिए बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service