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फूल नहीं तो पत्थर कह दो।
इतना भी तो हंसकर कह दो ।।-- बहुत सुन्दर भाव
बहुत बहुत बधाई आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी बाकी मिथिलेश जी ने बहुत सुन्दर सुझाव दिया है !
वामनकर जी ने जो सम्पादन किया उससे आपको काफी सीख मिली होगी i भाव तो आपके पास है बस सही शब्दों में ढालना ही शिल्प है i सस्नेह i
अच्छी भावाभिव्यक्ति ..... बस इसे ग़ज़ल बनाने के लिए यदि उचित लगे तो 22-22-22-22 बहर में कह सकते है .. सादर
फूल नहीं तो पत्थर कह दो। ...........................फूल नहीं तो पत्थर कह दो
चलो ये बात हँसकर कह दो।।............................ दो बातें पर हंसकर कह दो
मुझे भी मुकम्मल करिये अब।.........................आज मुकम्मल कर दो ऐसे
इक बार सही दिलबर कह दो।।......................... एक दफे बस दिलबर कह दो
साथ रहूँगा मरते दम तक।............................. साथ चलूँगा मरते दम तक
मुझको अपना रहबर कह दो।......................... मुझको अपना रहबर कह दो
माँ बाबा का आज्ञाकारी।। ............................. माँ बाबा की बात सुने सब
ऐसे घर को भी घर कह दो।।......................... ऐसा सपनों में घर कह दो
ऊँच नीच सम भाव रहा जो। ........................ ऊँच नीच सम भाव रहा जो
उसको भी एक नज़र कह दो।।........................ उसको भी तो बेहतर कह दो
सदियों तक सुनने में आये। ........................... सदियों तक सुनने में आये
ऐसी इक ग़ज़ल अमर कह दो।।....................... एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो
माँ बाबा का आज्ञाकारी।।
ऐसे घर को भी घर कह दो।।
ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी एक नज़र कह दो।।
ये लाइने आपकी इस रचना के प्राण लगें और असर भी करती हैं ,प्रयास के लिए बधाई
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