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ग़ज़ल----उमेश कटारा ---बिचाराधीन है मेरा मुकदमा भी अदालत में

फँसा इन्साफ है मेरा गुनाहों की सियासत में 
विचाराधीन है मेरा मुकदमा भी अदालत में
-----
लिये हथियार हाथों में,चली थी मज़हबी आँधी
ज़ला परिवार था मेरा , कभी शहरे क़यामत में
-----
अख़रता है सियासत को ,मेरा इन्सान हो जाना 
हुआ बरबाद था मैं भी, क़भी सच की वक़ालत में
-----
कहीं मन्दिर कोई तोड़ा ,कहीं मस्ज़िद कोई तोड़ी
फँसा है आदमी देखो,न जाने किस इबादत में
-----
दरिन्दे आज बाहर हैं,मेरी तारीख पड़ती है
खडे मी-लॉर्ड हैं देखो ,गुनाहों की हिमायत में

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित


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Comment by umesh katara on December 25, 2014 at 6:26pm

मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 25, 2014 at 6:25pm
Comment by umesh katara on December 25, 2014 at 6:24pm

gumnaam pithoragarhi जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 25, 2014 at 6:24pm

Er. Ganesh Jee "Bagi"जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 25, 2014 at 6:24pm

शुक्रियाHari Prakash Dubey जी

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:20pm

दरिन्दे आज बाहर हैं,मेरी तारीख पड़ती है
खडे मी-लॉर्ड हैं देखो ,गुनाहों की हिमायत में...गज़ब आदरणीय  उमेश कटारा  जी ,हार्दिक  बधाई  !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2014 at 4:59pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई आदरणीय कटारा जी .

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 2:41pm
दरिन्दे आज बाहर हैं,मेरी तारीख पड़ती है
खडे मी-लॉर्ड हैं देखो ,गुनाहों की हिमायत में

हकीकत को बयाँ करता ये शेर वाह खूब
वाह भाई जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2014 at 2:25pm

कटारा जी

जज्बात के कद्र करता हूँ i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 1:28pm
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल। बेहतरीन अशआर। बह्र को खूब निभाया है। आदरणीय उमेश जी हार्दिक बधाई। एक छोटा सा सुझाव यदि आपको उचित लगे तो,
बिचराधीन को विचाराधीन और बक़ाल त को वक़ालत कर लीजिये

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