For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-उमेश कटारा

फँस गया हूँ आफ़तों में
आज़ हूँ मैं पागलों में

क्या सुँकू तूने कमाया
क्या मिला है फ़ासलों में

मज़हबी आतंक से अब
आदमी है दहशतों में

सब ग़िले शिक़वे भुलादो
क्या रख़ा है रतज़गों में 

ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 1:01pm
मतला संशोधन से ग़ज़ल निखर आई आदरणीय उमेश कटारा जी। हार्दिक बधाई इस उम्दा ग़ज़ल के लिए।
Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:07pm

जो भी है भावप्रद है ,बाकी गुरुजन की बात मानें और आगे बढ़े |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:34pm

आदरणीय उमेश कटारा जी अच्छी गैर मुरद्दफ़ गज़ल है शेष आदरणीय गिरिराज सर ने तो कह ही दिया है।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 7:25pm

मज़हबी आतंक से अब
आदमी है दहशतों में

और 

ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में

चिंतनीय और मननीय पंक्तियां मेरी नजर में...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 4:12pm
मैं कभी था दिलबरों में
आज हूँ मैं पागलों में

आदरणीय उमेश जी ऐसा कुछ बदलाव करना होगा।
बाकि दिलबरों सुझाव नहीं है दिलबर एक ही उचित है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 4:05pm
क्या बात है आदरणीय गिरिराज सर, नज़र आपकी भी कमाल है इस पर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया इसीलिए आपको 'सर' कहता हूँ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 3:44pm

कटारा जी

बेहतरीन भाव्  i काफिया-  रदीफ़ पर थोडा ध्यान और दें i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2014 at 3:27pm

आदरणीय उमेश कटारा भाई , गज़ल अच्छी  कही है , बधाई स्वीकार करें ।

काफिया -- दिलजलों , फासलों , पागलों के बाद दहशतों , हादसों रतजगों   सही नही लग रहा है   -- उपर के शे र मे  अलों काफिया है और बाद के शे र मे केवल ओं । देख ली जियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:09am

ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में........बड़ा शेर ....

उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय उमेश कटारा जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 9:57pm
ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में ॥
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, आदरणीय उमेश कटारा जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ..मैं निजि रूप में दर्पण जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द को…"
23 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
25 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आ. अजय जी,अच्छे भावों से सजी हुई ग़ज़ल हुई है लेकिन दो -तीन बातें संज्ञान में लाने का प्रयत्न कर रहा…"
26 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,मतले से बात शुरुअ करता हूँ.. मुट्ठी भर का अर्थ बहुत थोड़े या लिटरल- 5 (क्यूँ…"
40 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
48 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, एक अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  कई शेर हैं जो पाठकों…"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted blog posts
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जंग के मोड़ पर (लघुकथा)-  "मेरे अहं और वजूद का कुछ तो ख्याल रखा करो। हर जगह तुरंत ही टपक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
" नमन मंच। सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हार्दिक स्वागत। प्रयासरत हैं सहभागिता हेतु।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"इस पटल के लघुकथाकार अपनी प्रस्तुतियों के साथ उपस्थित हों"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"उत्साहदायी शब्दों के लिए आभार आदरणीय गिरिराज जी"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service