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कोई चाहत नहीं मेरी ,तेरे इक़ प्यार से आगे
क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे
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क़भी का जीत लेता मैं,ज़माने को मेरे दम पर
मग़र वो जीत मिलनी थी,तेरी इक हार से आगे
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हरिक ख़्वाहिश अधूरी है,इन्हे करदे मुकम्मल तू
क़भी तो आज़मा ले तू ,मुझे इनकार से आगे
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जमाने की हरिक़ खुशियाँ ,तेरे कदमों तले रख़ दूँ
तेरा हर ख़्वाब हो जाऊँ,तेरे इक़रार से आगे
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कोई पागल कहे मुझको,कोई मारे मुझे पत्थर
नहीं चाहूँगां मैं फ़िर भी मेरे दिलदार से आगे
------उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर गज़ल हुई भाई जी ,नव वर्ष एवं इस सफल प्रयास पर हार्दिक बधाई
आदरणीय उमेश कटारा भाई , अच्छी गज़ल कही है , सभी अश आर सुन्दर कहे हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
क़भी तो आज़मा ले तू ,मुझे इनकार से आगे......आदरणीय उमेश कटारा जी बहुत खूब ..नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ हार्दिक बधाई !
कोई पागल कहे मुझको,कोई मारे मुझे पत्थर
नहीं चाहूँगां मैं फ़िर भी मेरे दिलदार से आगे
आदरणीय उमेश जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है |नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ साथ इस उम्दा ग़ज़ल पर ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर
आदरणीय उमेश जी ..इस सुंदर रचना पैर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारे करें सादर ..नव बर्ष मंगलमय हो ..
आदरणीय कटारा जी
नीचे गलत टिप्पणी की क्षमा चाहता हूँ i
कहूं क्या मैं कटारा जी अब इन अशआर से आगे i सादर i
कहूं क्या मैं कि अब मिथिलेश जी इन अशआर के आगे
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