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ज़िन्दगी है
बोझ सी है
इश्क तो अब
ख़ुदकुशी है
इक ग़ज़ल सी
तू हँसी है
अब ग़मों से
दोस्ती है
बुलबुले सी
ये ख़ुशी है
आफतों से
दोस्ती है
इक पहेली
ज़िन्दगी है
शोर गुमनाम
दिल में भी है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
बहुत खूब , आदरणीय गुमनाम भाई , छोटी बहर मे बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही , बधाइयाँ ।
गुमनाम जी
क्या बात है i इसे कहते है गागर में सागर i
आदरणीय गुमनाम जी एक रुक्नी में आपका यह प्रयोग नायाब है बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गजल पर आपको दिल से बधाई |
बहुत सुन्दर ...शानदार ग़ज़ल आदरणीय
सुन्दर सफल प्रयोग
हार्दिक बधाई
chhoti bahr ka uttam prayas .......bahut hi acchha
बेहतरीन ग़ज़ल.... छोटी बह्र की ग़ज़ल कहने का मज़ा ही अलग है ... आपने बहुत उम्दा लिखी है आपको बहुत बहुत बधाई
इस ग़ज़ल में
शायरी है
मान्यवर,
आपने शायद ‘हसीं’ कि जगह ‘हँसी कहा हैं जो ‘हसीन’ का संक्षिप्त रूप है. इसलिए काफ़िया ग़लत है. प्रयास काबिले तारीफ
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