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तू मुहब्बत न आजमा मेरी
है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी
यूँ कहे पर न जा ज़माने के
गाह चौखट तलक तो आ मेरी
अश्क़ चाहें निकलना आँखों से
रोकती है उन्हें अना मेरी
कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का
खुद मैं कातिब हयात का मेरी
रेत में दफ़्न हो गया कतरा
जो ज़बीं से अभी गिरा मेरी
ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले
फिर वही करते हैं दवा मेरी
हर सफर में उदास राहों पर
साथ मेरे चले सदा मेरी
राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी
(कातिब- लेखक, जा ब जा- जगह-जगह)
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जु भाई जी .... आपकी ग़ज़ल कई बार पढ़ी ... बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..... शेर दर शेर बस दाद कुबूल कीजिये
"आदरणीय शिज्जु साहब, कमाल है सर , मुझे ग़ज़ल लिखना तो नहीं आता पर आपकी ग़ज़लों से आनंद लेता रहता हूँ , बहुत बधाई आपको !
//राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी//
आदरणीय शिज्जू भाई, कोट किया हुआ शेर मुझे अधिक पसंद आया, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई .
आदरनीय शिज्जु भाई , क्या खूब सूरत गज़ल हुई है , वाह !! दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।
कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का
खुद मैं कातिब हयात का मेरी
ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले
फिर वही करते हैं दवा मेरी
हर सफर में उदास राहों पर
साथ मेरे चले सदा मेरी
राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी -- बहुत खूब आदरणीय इन अश आर के लिये खूब बधाई ।
आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को समय दिया स्नेह बनाये रखें
सादर,
आदरणीय रामशिरोमणि भाई ग़ज़ल की सराहना के लिये हार्दिक आभार
आदरणीय राहुल जी आपका हार्दिक आभार
बहुत शानदार ग़ज़ल हुयी आदरणीय शिज्जू 'शकूर' साहब..
ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले
फिर वही करते हैं दवा मेरी
हर सफर में उदास राहों पर
साथ मेरे चले सदा मेरी
राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी...क्या कहने सभी शेर गज़ब हैं..बधाई आपको.
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