‘कवियों से मुझे नफरत है
घिन आती है उनके वजूद से
जैसे सच्चे मुसलमान को
मूलधन के सूद से’
मुझसे कुबेर ने कहा
मैंने आघात को सहा
‘कवि तो मै भी हूँ
अँधेरे का रवि मै ही हूँ
जहाँ नहीं जाता रवि
वहां पहुँच जाता कवि
फिर आपको घिन क्यों है ?’
‘वो बात जरा यों है,
कवि को गरीब ही दिखते है
उन पर ही लिखते हैं
उन्हें दिखता है –काली रात, अंधेरा
क्यों नहीं देख पाते वे सवेरा
हमारी सम्पन्नता क्यों नहीं लुभाती
अमीरों की याद उन्हें क्यों नहीं आती ?
सुख पर समृद्धि पर कलम नहीं चलती
अमीरों के ठाठ पर दाल नहीं गलती
इसीलिये घिन हमें होती है तुम से
सीधे नहीं होते तुम कुत्ते की दुम से’
मैंने कहा- ‘मै क्या लिखूं
विधि ने जब लिख दिया I
तुम संपन्न हो ईश्वर का हाथ है
गरीबो का हाथ ही उनका जगन्नाथ है
हमें केवल उनका असह्य दुःख दिखता है
जिन्हें भगवान् से भी कुछ नहीं मिलता है
तुम बेईमान, मक्कार घूस लेते हो
गरीब की हड्डी-पसली चूस लेते हो
तुम मुझे गाली दो या सारमेय कहो
भौंकते तो तुम भी हो, औकात में रहो I’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय गोपालनारायण साहब ,सुन्दर प्रस्तुति है |तंज़ भी और करुणा भी |सादर अभिनन्दन
मैंने कहा- ‘मै क्या लिखूं
विधि ने जब लिख दिया I
तुम संपन्न हो ईश्वर का हाथ है
गरीबो का हाथ ही उनका जगन्नाथ है
हमें केवल उनका असह्य दुःख दिखता है
जिन्हें भगवान् से भी कुछ नहीं मिलता है
सत्य को इतना बदसूरत बना रखा है कि उससे घिन ही आती है. चाहे परिणाम सदा उसी के पक्ष में हों. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें आदरणीय डा. गोपाल जी
बेहद उम्दा हार्दिक बधाई आपको |
आदरणीय बड़े भाई , सुन्दर, सार्थक कविता हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
कविता स्वयं में सफल है ,पर क्या वास्तव में कवि केवल गरीब के गीत ही लिखता है या क्या केवल गरीबी और बेबसी के गीत लिखने वाले को ही कवि माना जाए |वस्तुतः कई बार महसूस होता है कि ऐसा लिखकर हम गरीब और कवि दोनों का तिरस्कार कर रहे हैं |बेशक अभावों में कवि पलता है पर सफल कवि पेट भरने के बाद ही लिख पाता है |उसकी सफ़लता से ही उसका पेट पलता है |क्षमा करें कवि का कर्म केवल लिखना है और वो समय और लोगों के हिसाब से गीत लिखता है |
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ! सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर...
कवि को गरीब ही दिखते है
उन पर ही लिखते हैं.....बहुत सुन्दर ! हार्दिक बधाई ! सादर
बड़ी बात कह गये आदरणीय, कविता भाव स्तर पर बहुत बढ़िया लगी, बधाई स्वीकार करें . मुझे जाने क्यों रचना कुछ अधिक शाब्दिक लगी, सादर .
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर बेहतरीन रचना है वाकई एक कवि जो देख सकता है वो एक आम आदमी नहीं कवि यदि आप जैसा अनुभवी व्यक्ति हो तो वो हर पर्दे के पीछे छुपा सच देख सकता है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय आपको इस कामयाब रचना के लिये
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