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एक प्रस्तुति और सौ अफ़साने !! ..
इस प्रस्तुति पर हुई सकारात्मक चर्चा ने इस मंच के 'हेतु' को पुनर्प्रतिस्थापित किया है.
भाई राहुल डांगी को हौसला चाहिये. ठीक है. लेकिन हौसलाअफ़्ज़ाई 'आरक्षण' का पर्याय नहीं है. रचनाकर्मी हतोत्साह की न सोचें, न ही तीखी आलोचना से घबरायें. अन्यथा, रचनाधर्मिता के लगातार हाशिये पर चले जाने का ख़तरा बनने लगता है. ऐसा कुछ मैं आदरणीय मिथिलेशभाई तथा भाई शिज्जूजी से विशेष तौर पर कह रहा हूँ. आप दोनों के वार्तालाप से बहुत कुछ सीखा-समझा जा सकता है. साथ ही, ऐसा भी संप्रेषित हो रहा है जो विन्दुवत संवाद को अन्यथा विस्तार दे दे.
रचनाकर्म के स्तर को बढ़ाने के क्रम में स्वध्याय पहला सोपान है.
व्यक्तिगत तौर पर मैं इस मंच के नये सदस्यों से अत्यंत प्रभावित हूँ. परन्तु, यह प्रभाव तभी तक हमसभी को संतुष्ट रखेगा, जबतक यह भान बना रहेगा कि स्वाध्याय को रचनाकार अन्यथा ’काम’ नहीं समझ रहे हैं.
स्वाध्याय की प्रक्रिया रचनाकर्म का अन्योन्याश्रय हिस्सा है, भाई राहुल डांगीजी.
हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीय शिज्जु भाई जी, आपके जवाब के बाद आपकी टिप्पणी का मर्म समझा हूँ आपका कहना सही है, ऐसी टिप्पणियाँ आ रही है जो कभी कभी बहुत दुःख देती है. यद्यपि मुझे अब तक ऐसी टिप्पणी का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन कई नए रचनाकारों की रचनाओं विशेष कर ग़ज़ल विधा में ये बात ज्यादा हो रही है. शायद इसीलिए मैंने राहुल भाई जी की इस ग़ज़ल पर इतनी लम्बी टिप्पणी की थी. लेकिन एक बात और कहूँगा ये उनका तरीका है, ये उनका लहज़ा है, उसे आप न अपनाये.(आपसे विशेष निवेदन) वैसे आपकी टिप्पणी का मर्म यदि ऐसे सभी लोगो तक पहुंचेगा ऐसी आशा है. वैसे भी समस्याएं और त्रुटियाँ बताने के साथ साथ समाधान भी बताया जाए तो और अच्छा हो. आपकी टिप्पणी पर एक दिशा में सोचकर आपत्ति दर्ज की थी. सभी पहलुओं पर फिर से विचार किया है। आपकी बात से व्यक्तिगत तौर पर सहमत हूँ. आपके लहज़े पर फ़िदा है शिज्जु भाई जी, उसी लहज़े को चलने दे बाकि फिर सब शुभ शुभ है। . सादर
आदरणीय मिथिलेश जी मेलबॉक्स में मैंने को जवाब इसलिये नहीं दिया क्योंकि आपकी वो आपत्ति वाली टिप्पणी अपनी जगह यथावत थी मैंने सोचा कि आप उसे काटकर मेलबॉक्स में चिपकायेंगे लेकिन वैसा नहीं हुआ और आपकी टिप्पणी के बाद बार बार मैंने अपनी टिप्पणी पढ़ी मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैंने ग़लत क्या कहा था वो टिप्पणी मैने पूरी तरह से आदरणीय राहुल डांगी जी को संबोधित करते हुए लिखा था मेरी समझ के अनुसार उसमें बुरा मानने जैसा कुछ नहीं है । जी हाँ ये सीखने एवं सिखाने का मंच है। टिप्पणी होनी चाहिये लेकिन ये ज़रुर देखा जाना चाहिये कि रचनाकार नया है या पुराना। राहुल जी ने ये पहले भी स्वीकार किया था कि वो बह्र पर पिछले दो महीने से काम कर रहे हैं सम्प्रेषणीयत, ग़ज़लियत ये रचना में सतत अभ्यास से ही सुधार होगा। क्या ये सही नहीं है कि थोडा उन्हें वक्त दिया जाये। आदरणीय टिप्पणी हौसला अफ़्ज़ाई करने वाली होनी चाहिये हौसला तोड़ने वाली नहीं। मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूँ कई शुअरा हैं जिन्हें गुमान है कि वे बहुत अच्छे शायर हैं जो वो कहें वो सही इस बात को विस्तार सोचिये और हर पहलू को देखिये और मौजूदा दौर के दीगर शुअरा को भी ध्यान में रखिये। इसके बाद यदि कोई और आपत्ति हो तो आपका स्वागत है लेकिन यहाँ नहीं मेरे मेल बॉक्स में।
आदरणीय शिज्जु भाई जी आपके इस कथन पर मैं इस मंच पर पहली बार क्षमा मांगते हुए घोर आपत्ति दर्ज करा रहा हूँ -
"व्यस्त होने के बावजूद साहित्य के प्रति आपका समर्पण "
व्यस्त सभी है. कुछ अतिव्यस्त है. आपके कथन से लग रहा है जैसे बाकी लोग खाली बैठे है. पुनः क्षमा सहित दूसरी आपत्ति भी दर्ज करा रहा हूँ -
"अक्सर शायरों को ये गुमान होता है कि वो श्रेष्ठ है या वो जो कहे वो सही या वो बहुत अच्छा शायर है "
आपके इस कथन से सीखने सिखाने की परंपरा पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया. अब कोई भी किसी त्रुटी को इंगित करने से पहले एक हजार बार सोचेगा कि कहीं मुझे कोई गुमान करने वाला न समझ बैठे...छोड़ो और फिर संकोच से टिप्पणी देंगे सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .... ऐसे में सीखने सिखाने की परंपरा का क्या होगा आप भी समझते है. सीखने सिखाने की परंपरा इस मंच की विशेषता रही है और आप इस मंच के पुराने और कार्यकारी सदस्य है अतः आपसे ऐसी टिप्पणी आशा, मेरे जैसा नया सदस्य कम से कम नहीं रखता. इस मंच के वरिष्ट सदस्यों को मैं गुरु की तरह मानकर सीख रहा हूँ इसलिए ऐसे कथन दुःख पहुंचाते है. प्रोत्साहित करना श्रेष्ट कर्म है किन्तु साध्य के साथ साधन की पवित्रता भी जरुरी है . ये मेरे विचार है यदि आपको उचित न लगे तो क्षमा चाहता हूँ किन्तु उत्तर अवश्य दे ....सादर
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