मुख भोला है भली पोशाक |
मैं भी तत्पर हुई बेबाक | बेबाक= निर्भीक|
किसे पता की मन में खोट|
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
कमरे में घुसते ही जाँचै |
उलटि पलटि वह ठहि के बाँचै | ठहि= स्थिर, इत्मीनान; बाँचै= निरखना, पढ़ना |
आँखों से मारै जस चोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
ना छोड़ै जब अवसर आवे |
अंगुली पकड़त दाग लगावे |
ना पहचानै बड़ा न छोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
यही दाग जो देखै दुनिया |
लगा न अहमक, लगै त गुनिया | अहमक= मंदबुद्धि; गुनिय= अक्लमंद (गुणवान) |
न छूटै देख्यो रगड़ निकोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
एक दूजे से नजर बचावै |
चिन्ह देख कइ बटन दबावै |
उहँईं दबावै जहँ पै ओट | ओट= आड़ (पर्दे इत्यादि का ओट) |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
.
शरद सिंह “विनोद”
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदारणीय शरद भाई , बढिया कहमुकरियाँ रची है आपने , बधाई ।
आदरणीय खुर्शीद जी धन्यवाद.... आपके विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए कोटिशः धन्यवाद!!
आदरणीय श्री विजय शंकर जी सादर आभार.. धन्यवाद!
आदरणीय सोमेश जी! -- मुकरियाँ= चटनी... चटनी अच्छी लगती ही है......... धन्यवाद!!!
धन्यवाद आदरणीय रमेश जी
आदरणीय श्री मिथिलेश भाई आप जैसे श्रेष्र्ठ, अग्रजों के प्रेरणा व सहानुभूति ही रचना मे परिणत हुई है...... धन्यवाद //सादर
आदरणीय श्री हरि प्रकश जी शुभकामनायें सहर्ष स्वीकार... सहृदय धन्यवाद्ड!!
कमरे में घुसते ही जाँचै |
उलटि पलटि वह ठहि के बाँचै |
आँखों से मारै जस चोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
आदरणीय शरद सिंह जी अच्छी रचना है | खुसरो की याद दिलादी आपने |सादर अभिनन्दन
mukuriyan acchi lgi
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