तू देव रूप है मेरे लिए ---
मुझे तराशा है तेरे प्यार ने
मुझपे ऐतबार कर
तू देव रूप है मेरे लिए,मेरी
पूजा स्वीकर कर
मैं तो दलदल था,कमल पुष्प
खिलाए तुमने मुझमें
मृत था मेरा ये उर
एहसास पुनः जगाए तमने मुझमें
उठ,खड़ी हो,मजबूत बन
अपनी कोशिश ना निराधार कर
तू देव रूप है मेरे लिए -----------
जब सारे ज़माने ने
मुझ से मुँह फेर लिया
जब सघन तिमिर ने
मुझ को घेर लिया
तुम आई मेरी ज़िन्दगी में
किरण का आधार बन
तू देव रूप है मेरे लिए -------------
माना मैंने तुझे गढ़ा
पर उससे पहले पढ़ा
तुम्हें रच मेरा यकीन जागा
तुम्हें देख किया पुनःप्रेम-ईरादा
तो उठ इस प्रेम का अब विस्तार कर
तू देव रूप है मेरे लिए -------------
माना बिछड़ना है हमारी तकदीर
पर क्यों मन को करती अधीर
पूर्णता कहाँ देता है प्रेम को साकार
तो चल इसे अब निराकार कर
तू देव रूप है मेरे लिए
.
सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
भाई लोगों का प्यार सिर-आँखों पर पर गुर-जनों का आशीष लेखन को एक नई शक्ति और नया चिंतन देता है |आप सभी के प्रेम और स्नेह के लिए थे दिल से बधाई |त्रुटी ईंगित करने के लिए गणेश सर आपका आभार ,आगे पूरी कोशिश रहेगी की ऐसी त्रुटियों से बचूं
आ. सोमेश भाई , सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ।
//
एहसास पुनः जगाए तमने मुझमें
उठ,खड़ी हो,मजबूत बन
अपनी कोशिश ना निराधार कर//
सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई सोमेश जी.
सोमेश जी
प्यार दोनों पक्षो को सवारता है i आपने सही लिखा - माना मैंने तुझे गढा i पर उससे पहले तुम्हे पढा i मुझे अपना एक गीत याद आ गया-
प्रिय दर्शन हो तो इससे क्या , मैंने तुमको प्यार बनाया
तुममे जो था शांत उसी को आलंबन शृंगार बनाया i
मेरे मन की रस गंगा हो जाकर सागर में मिल जाना
मैं जी लूँगा साथी मेरे पर तुम मुझको याद न आना
बेहतरीन सोमेश भाई, बस थोडा और प्रवाह लाना है ,हार्दिक बधाई !
सुन्दर रचना |
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