युग्मों का गुलदस्ता …
एक पाँव पे छाँव है तो एक पाँव पे धूप
वर्तमान में बदल गया है हर रिश्ते का रूप
अब मानव के रक्त का लाल नहीं है रंग
मौत को सांसें मिल गयी जीवन हारा जंग
निश्छल प्रेम अभिव्यक्ति के बिखर गए हैं पुष्प
अब गुलों के गुलशन से मौसम भी हैं रुष्ट
तिमिर संग प्रकाश का अब हो गया है मेल
शाश्वत प्रेम अब बन गया है शह मात का खेल
नयन तटों पर अश्रु संग काजल करे पुकार
पिया मिलन को धधक रहे अधरों पे अंगार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। सर मैंने ये युग्म दोहे की विधा में नहीं लिखे अन्यथा मैं इसे युग्म न कहकर दोहे ही कहता। ये स्वतंत्र विचारों के स्वतंत्र युग्म हैं बस विचार आते गए और लिखता गया। दोहे लिखता तो उसकी नयमावली की परिधि में ही लिखता। आपके विचारों का हार्दिक आभार सर जी।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
तम के संग प्रकाश का अभी हुआ है मेल
प्रेम शाश्वत बन गया शह-ओ- मात का खेल............"shah-au-maat" ke esthan par
prem shashvat ban gaya , har jeet ka khel.............zyada better lagta hai ...geyta bhi aa jayegi ...........
आदरणीय सरना जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
वाह बहुत सुन्दर, प्रस्तुति के लिए बधाई
आदरणीय सरना जी ..सुंदर भावों को समाहित किये इन समस्त दोहों के लिए तहे दिल बधाई .सादर
आ 0 सरना जी
अच्छे भावों से भरी इस दोहावली में शिल्पगत कुछ सुधार अपेक्षित है -
एक पाँव पे छाँव है एक पाँव पे धूप
बदल गया है आजकल हर रिश्ते का रूप
अब मानव के रक्त का लाल नहीं है रंग
सांस मौत को मिल गयी जीवन हारा जंग
निश्छल हर अभिव्यक्ति से जग होता है तुष्ट
अब गुलशन से गुलो से मौसम भी हैं रुष्ट
तम के संग प्रकाश का अभी हुआ है मेल
प्रेम शाश्वत बन गया शह-ओ- मात का खेल
नयनन तट पर अश्रु संग काजल करे पुकार
पिया मिलन को धधकते अधरों पर अंगार
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर |
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