एक रचना,,,,,
(कुकुभ छंद और लावणी छंद का संधिक प्रयॊग)
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चॊर लुटॆरॆ निपट उचक्कॆ, चढ़ उच्चासन पर बैठॆ !
काली करतूतॊं सॆ अपनॆ, मुँह कॊ काला कर बैठॆ !!
राम भरॊसॆ प्रजातन्त्र की, अब भारत मॆं रखवाली !
जिसकॊ माली चुना दॆश नॆं,है काट रहा वह डाली !!
चीख रही हैं आज दिशायॆं,नैतिकता का क्षरण हुआ !!
चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!१!!
अमर शहीदॊं कॆ अब सपनॆं, सारॆ चकनाचूर हुयॆ !
लॊकतन्त्र की रबड़ी खा कर, मतवालॆ लंगूर हुयॆ !!
गाँधी की फॊटॊ कॆ पीछॆ,घात लगायॆ विषधर कालॆ !
भॊली भाली जनता इनकॊ, दूध पिलाकर कॆ पालॆ !!
आज झूठ कॆ दरवाजॆ पर, सत्य बिचारा शरण हुआ !!२!!
चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!
मानव मूल्य गिरॆं नित नीचॆ, भ्रष्टाचार उठा ऊँचा !
अपनी अपनी डफली सबकी,अपना अपना है कूंचा !!
किससॆ कहॆं वॆदना मन की,अब कैसॆ भाग्य जगायॆं !
अन्धकार कॆ जंगल मॆं हम,अब कैसॆ आग लगायॆं !!
अच्छॆ दिन कॆ इंतज़ार मॆं,जीवन जैसॆ मरण हुआ है !!३!!
.चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!
अब नमन शहीदॊं कॊ करना, कॆवल दस्तूर बना है !
भ्रष्टॊं कॆ पुतलॊं पर दॆखॊ,स्वर्णिम सा छत्र तना है !!
मँहगाई कॆ ताप-मान सॆ, बिलख रही भारत माता !
लाज बचानॆ भारत माँ की,काश यहाँ कान्हा आता !!
संविधान कॆ पन्नॊं पर बस, आज़ादी का वरण हुआ !!
चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!४!!
"राज बुन्दॆली"
०९/०१/२०१५
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,
Comment
वाह वाह, बहुत खूब, सुन्दर, बधाई कवि राज.
आदरणीय बुन्देली जी , बहुत अनुपम रचना हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राज बुन्दॆली जी !
आदरणीय राज बुन्देली जी
आज के सामाजिक अवमूल्यन पर बहुत सुन्दर छान्दसिक गीत प्रस्तुत हुआ है.. आपकी रचना धर्मिता हमेशा ही अपनी सार्थकता से आश्वस्त करती है.. बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये
कुछ बात अवश्य कहना चाहूंगी , शायद स्वीकार्य हो..
जिसकॊ माली चुना दॆश नॆं,है काट रहा वह डाली !! इस पदांश में गेयता बाधित है
गाँधी की फॊटॊ कॆ पीछॆ,घात लगायॆ विषधर कालॆ ! ........१६-१४ की पंक्तियों में ये १६-१६ की पंक्ति भी प्रवाह बाधित कर रही है
किससॆ कहॆं वॆदना मन की,अब कैसॆ भाग्य जगायॆं !
अन्धकार कॆ जंगल मॆं हम,अब कैसॆ आग लगायॆं !!.............यहाँ अगर , भाग्य जगाएं अब कैसे ....आग लगाएं अब कैसे ..किया जाएं तो?
अच्छॆ दिन कॆ इंतज़ार मॆं,जीवन जैसॆ मरण हुआ है ...........इस पंक्ति में 'है' अतिरिक्त टंकित हो गया शायद
अब नमन शहीदॊं कॊ करना, कॆवल दस्तूर बना है !
भ्रष्टॊं कॆ पुतलॊं पर दॆखॊ,स्वर्णिम सा छत्र तना है !! ...इन दो पंक्तियों में भी अंतर्गेयता बाधित है..... शब्द समूहों में कल निर्वहन से शायद समाधान हो..
शुभकामनाएं
सुंदर अभिव्यक्ति पर बधाई
आ० राज साहेब
बेहतरीन i 16 ,14 काम्बीनेशन i लावनी ने इसे गीत जैसी सुन्दरता प्रदान की i भाव भी उतने ही अच्छे i
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
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