भूमिका(कविता)
अश्रु-पूरित चन्दन से भी
अगर टीकूँ|
है असम्भव अब तुम्हारा
लौट आना||
मैं इस मंच पर अभी कुछ
और खेलूँगा|
तुमकों जो अभिनय जँचे
तो मुस्काना ||
था टिका सम्बन्ध जिस पर
घुना वो आलम्ब|
हो सके तो उसपे कुछ
रेह लगाना||
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सोमेश कुमार जी बहुत शानदार कविता है बधाई स्वीकारें
शुक्रिया ,साहित्य के सभी मर्मज्ञों और अभिन्न मित्रों एवं गुरुओं जनों का ,पथ-प्रशस्त करने एवं सराहना
अच्छी रचना आदरणीय सोमेश कुमार जी
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |......सुन्दर , सोमेश भाई हार्दिक बधाई !
उत्तम प्रयास i ना उम्मीदी भी और चाह भी i
आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .... खूब अच्छा लिखा है -
अश्रु-पूरित चन्दन से भी अगर टीकूँ
है असम्भव अब तुम्हारा लौट आना............ कमाल
मैं इस मंच पर अभी कुछ और खेलूँगा
तुमकों जो अभिनय जँचे तो मुस्काना
था टिका सम्बन्ध जिस पर घुना वो आलम्ब
हो सके तो उसपे कुछ रेह लगाना.................. वाह
हो सघन तिमिर जब कोई राह ना सूझे
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त टिमटिमाना........... बेहतरीन
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