नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला
बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला
जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |
नाम तुम्हारे ..........
खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी बोले
शब्द तुम्हारे सुनकर पत्ते,कलियाँ.भौरे डोलें
हलचल पूरा ताल करे था जब तुमने कंकड़ फैंका|
नाम तुम्हारे..........
आँख तुम्हारीं झील समंदर याकि दुर्लभ मोती
छंटता है जिससे अँधियारा तुम हो वो ज्योति
खोया हूँ मैं तुममे जब से तुम को देखा
नाम तुम्हारे..........
चंचल हिरणी तुम थी ,भरती रही कुलांचे
मोर,चकोर,जोगी,साधू सब तेरी धुन में नाचें
हो जाएगा वो तो गद्गद् हो तुम जिसकी किस्मत-रेखा |
नाम तुम्हारे..........
मतवाली मधुशाला बोलूं या बोलूं तुम्हें ताड़ी
अच्छे-अच्छे चित कर डाले हारे सभी खिलाड़ी
तुम्हारें नशे के आगे पानी भरने लगा हर ठेका |
नाम तुम्हारे..........
C-@-सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित,अगस्त 2014 )
Comment
वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गीत ,सम्मानीय somesh kumar जी
श्रृगार रस से परिपूर्ण अच्छी रचना श्री सोमेश kumar जी .... नाम तुम्हारे
शुक्रिया ,स्नेह व् उत्साहवर्धन के लिए |
नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा.....सोमेश भाई सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीय सोमेश भाई , गीत का बहुत उत्तम प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय , गीत के लिहाज़ से गेयता मे और कलों को और मात्राओं को साधने की ज़रूरत है ।
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
आदरणीय सोमेश भाई सुन्दर अति सुन्दर ,आपने तो मुझे लड़कपन की साथी याद दिला दी , वही तिल वही रेखा ,,कहीं ये वही तो नहीं | सादर
सोमेश् जी
अच्छा प्रयास है i
लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ |
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