For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत - आपसी ताप से जलती टहनियाँ ( गिरिराज भंडारी )

आपसी ताप से जलती टहनियाँ

************************

आँधियों की छोड़िये

हवा थोड़ी भी तेज़ बहे, स्वाभाविक गति से

टहनियाँ रगड़ खाने लगतीं हैं

एक ही वृक्ष की

आपस में ही

पत्तियाँ और फूल न चाहते हुये भी

कुसमय झड़ जाने के लिये मजबूर हो जाते हैं

 

टहननियों की अपनी समझ है ,

परिभाषायें हैं खुशियों की ,

गमों की

फूल और पत्तियाँ असहाय

जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं 

वो जड़ें ,

जिन्होनें सब टहनियों के लिये एक जैसी खींची थी ,

भेजी थी ,

जीवनी शक्ति

धरती की गहराइयों तक जा कर  

बाहर के उजाले का मोह त्याग स्वीकार किये,

घुप अँधेरे

 

क्या यही देखने के लिये

कि जल जायें टहनिययाँ उसके ही तने से लगी हुई

आपसी रगड़ से उत्तपन्न ताप से

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 15, 2015 at 9:46am

मार्मिक अभिव्यक्ति ...एक सत्य, जो आज के परिवार को, समाज को जलाकर खाक कर रही है, आदरणीय गिरिराज जी ... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 11:29pm

अद्भुत प्रतीकात्मकता से मन नम हो गया है, आदरणीय गिरिराज भाईजी..
अभिव्यंजना अपने चरम पर है और इतनी गहरी भावाभिव्यक्ति है कि एक-एक पंक्ति निहितार्थ को संप्रेषित कर रही है. समाज परिवार संगठन राष्ट्र अपने-अपने हिस्से से परिभाषित हो रहे हैं आदरणीय. यही रचनाकर्म की पराकाष्ठा होती है. इंगितों से संज्ञाओं का निरुपण.
सादरधन्यवाद इस अत्यंत प्रखर किन्तु मनोमय रचना के लिए.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:11pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही बेहतरीन भावाभिव्यक्ति है ... अतुकांत के शिल्प के विषय में नहीं जानता लेकिन कविता का मर्म और उसमें छिपी किन्तु अभिव्यक्त होती पीड़ा को महसूस कर रहा हूँ. इस सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 7:54pm

वाकई ,जडें माता पिता की तरह असहाय प्रतीत होतीं हैं , टहनियां आजकल के बच्चे ......

टहननियों की अपनी समझ है ,

परिभाषायें हैं खुशियों की ,

गमों की

फूल और पत्तियाँ असहाय........ये असहाय  बच्चे

जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं

यही देखने के लिये

कि जल जायें टहनिययाँ उसके ही तने से लगी हुई

आपसी रगड़ से उत्तपन्न ताप से............बहुत खूब ...सुन्दर रचना आदरणीय गिरिराज सर  | सादर अभिनन्दन |

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:38pm

दर्द पीड़ा आकुलाह्त ...समान अवसरों के बावजूद उपजी असमानता व उसका वीभत्स रूप अभिव्यक्त करती ....वर्तमान समय की कसक को अभिव्यक्त करती एक मार्मिक कविता  बहुत  बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सा 

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 3:08pm

वाह ,क्या खुबसुरत प्रतीकात्मकता है ,जड़ो से अभिभावक ,टहनियों से उनकी सन्तान और कली-पत्तियां तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्त्व करती लगती हैं ,सुंदर अति मनोहरी |

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 2:44pm

जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं 

वो जड़ें ,

जिन्होनें सब टहनियों के लिये एक जैसी खींची थी ,

भेजी थी ,

जीवनी शक्ति

धरती की गहराइयों तक जा कर  

बाहर के उजाले का मोह त्याग स्वीकार किये,

घुप अँधेरे

 

क्या यही देखने के लिये

कि जल जायें टहनिययाँ उसके ही तने से लगी हुई

आपसी रगड़ से उत्तपन्न ताप से

आदरणीय गिरिराज सर वर्तमान परिस्थियों का अच्छा रूपक है ,व्यंजना अपने चरम पर है |आप जैसे कलमकार हमारे प्रेरणास्त्रोत है |सादर अभिनन्दन |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
13 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
20 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service