For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम्"

अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !

सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !

सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !

परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!

 

निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !

परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं !

अनेकता में एकता की शान एक–एक है !

कुर्बान हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !!

 

रहीम और राम  संग-संग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

अच्छे दिन लिए , नया प्रभात आ गया !

नवीनता प्रबुद्ध्ता का, शंखनाद छा गया !

किरण-किरण प्रकाश से,प्रदीप्त भाषमान है !

दिव्यता–भरित धरा, निर्भीक आसमान है !!

 

हस्त में अभय ध्वजा, तरंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

इक्कीसवी सदी सुखद, बसन्त हो गया चमन !

कली-कली पराग से, सनद्ध हो गया पवन !

प्रसून प्रेम से भरा, प्रसन्न हो गया सुमन !

भवरुता-भरित विमल , विश्व भारती भवन !!

मैं डोर हूँ ,अज़ान,तू पतंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1086

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 1:55pm

पुनश्च ,

पंच चामर के राजना विन्यास में एक जगण  छूट  गया है  i विन्यास इस प्रकार होगा -(जगण +रगण +जगण +रगण+जगण + गुरु ) अर्थात   1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 ,  2 /// // सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 1:44pm

आदरणीय हरि प्रकाश जी

पंच चामर मात्रिक छंद नहीं है i यह वर्णिक वृत्त है i इसमें यति (8,8) वर्णों पर होती है  रचना विन्यास (जगण +रगण +जगण +रगण+ गुरु ) अर्थात  1 2 1 , 2 1 2, 1 2 1 , 2 1 2, 2  होता है i  जो उदाहरण  मैंने दिया था उसे फिर से देख लें  i इस रचना का अब और परिष्कार न करे इससे उसकी मौलिकता नष्ट हो जायेगी i भविष्य में पंच- चामर  में  अवश्य  रचना करिएगा i आप में सामर्थ्य है हम सब उसकी बानगी देखना चाहते हैं i  शिव तांडव स्त्रोत भी पंच चामर में ही  है i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 6:28am

नया  नया  दिवस लिए , नया प्रभात आ गया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 6:27am

शहीद हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !

नए  नए दिवस लिए , नया प्रभात आ गया !

कि  दिव्यता–भरित धरा, निर्भीक आसमान है !!

भविल से -भरित विमल , कि विश्व भारती भवन !! .......भविल-वैभवशाली 

इसके अलावा मैं निर्भीक के लिए स्पष्ट नहीं हूँ शेष गुनिजन बताएँगे ... आपने बड़ी मेहनत से रचना को संवारा है. संशोधन  के बाद रचना निखर गई है. छंद के द्वार में प्रवेश हो गया. शुभकामनायें आदरणीय हरिप्रकाश जी .. सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 5:30am

आदरणीय राहुल जी आपका रचना पर उत्साहवर्धन के लिए  हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 5:28am

आपके सुझाव के अनुसार कुछ मात्रा परिवर्तन कर रचना पुनः प्रस्तुत है आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर कृपया एक बार पुनः दृष्टी डाल दीजियेगा, सादर धन्यवाद ! 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 5:28am

आदरणीय मिथिलेश जी , रचना  सुधार के साथ पुनः प्रस्तुत है ! सादर धन्यवाद !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 11:35am
आदरणीय दूबे जी झूम गया मैं! वाह वाह वाह! अति सुन्दर ! शिल्प नॉलिज तो नहीं मुझे पर आनन्द आ गया पढ कर ! नमन आपकी लेखनी को ! सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 16, 2015 at 8:52pm

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई स्वीकार करे. आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ने बड़ी अच्छी बात कही है पञ्च चामर छंद में ही आपने लिखा है देखिये एक बार इस तरह पढ़ कर -

अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !

सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !

सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !

परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!

 

निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !

सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

 

धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !

परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं !

अनेकता में एकता की शान एक–एक है !

कुर्बान हिन्द के लिए कि जान एक–एक है !!

 

रहीम और राम  संग-संग वंदे मातरम् !

सुना  रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!

जो बोल्ड शब्द है उन्हें ही थोड़ा सा परिवर्तित किया है बाकी आपकी रचना पञ्च चामर छंद में ही है सादर 

आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है. आप छंद अच्छा लिखते है आपको पहले भी निवेदित कर चुका हूँ. शेष पद भी ऐसे ही संशोधित कर लीजिये... आनंद आ जाएगा ... पुनः इस दिल जीतने वाली रचना के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 16, 2015 at 3:47pm

हरि प्रकाश जी

बहुत उम्दा भाव भरी रचना i  यह पंच चामर छंद के इतना  निकट  है कि मुझे आश्चर्य होता है आपने छंद पर प्रयास क्यों नहीं किया i ऐसी रवानी तो उस छंद में ही मिलती है i आप देखिये --- हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

                                                                     स्वयं प्रकाशमुज्वला  स्वतंत्रता पुकारती --------------- सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
7 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
20 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
23 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
26 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service