"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |
"देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर
"सब ले गए साहब "- कर्मचारी
"कहता हूँ ,सालों से किसी की चीज मत खाया करो ,छोड़ ये सब चल एक कप चाय पिला "- अफसर कहते हुए बाहर निकल आते हैं |
"मौलिक व् अप्रकाशित "
Comment
आ. गोपालनारायण जी ,,मैंने कोशिश की ,,आपकी सलाह के लिया धन्यवाद ,हमारा ऐसे ही मार्गदर्शन किया करें |
महर्षि जी
प्रस्तुति और बेहतर हो सकती थी i मैं आपकी इसी प्रस्तुति को अपनी मति के अनुसार कुछ ठीक करता हूँ -
"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |
"अच्छी तरह देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर ने आदेश दिया i
"सब ले गए साहब "
"रेलवे इतना विज्ञापन करती है कि किसी की दी हुयी चीज मत खाओ i मगर साले मानते नहीं i मरने दो ,कमीने को i अच्छा खासा मूड ख़राब कर दिया i चल , एक कप चाय पिला "|
बहुत खूब. सुंदर चित्रण आदरणीय महर्षि जी. हार्दिक बधाई
संवेदनहीन पुलिस का चरित्र उजागर करती सुंदर लघु कथा के लिए बधाई श्री महर्षि जी
संवेदना मर रही है लोगों में, सुन्दर लघुकथा बधाई महर्षि जी !
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