कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें
बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे
कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं
बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |
(2)
सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |
(मौलिक व प्रकाशित)
Comment
कुंडलियों के रूप में सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी, बधाई प्रेषित करता हूँ सादर.
लड़ी वाला जी
यह कच्ची /पक्की में तुक कहाँ है मित्र i सुधार कर लें , भाव अच्छे है i
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |......बहुत सुन्दर आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी, हार्दिक बधाई !
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