बच्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में आँसू स्पष्ट दिख रहे थे ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : फेस वैल्यू
Comment
आदरणीय कृष्ण सिंह जी, लघुकथा आपको पसंद आयी और प्रथम प्रतिक्रिया आप द्वारा प्राप्त हुई इसके लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी , कथा अपना सन्देश स्पष्ट करती है..
भौतिकवाद के पीछे दम तोड़ता वात्सल्य ...भाव बहुत अच्छे से लघुकथा में समाविष्ट है बहुत खूब हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश जी
अब मैं क्या कहूं सर, आपने सबकुछ कह दिया ....वात्सल्य का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है ...
आदरणीय इं. गणेश जी “बाग़ी” सर, बहुत ही संवेदनशील लघुकथा है .., वात्सल्य, दम तोड़ रहा है , कारण ..वस्तु ...पैसा ...मजबूरी , मनोविज्ञान ...कम शब्दों में बहुत कुछ ! सुन्दर रचना , सादर !
आदरणीय बागी सर बहुत ही मार्मिक लघुकथा.... भावनाओं पर भौतिकवाद हावी हो रहा है .... कथ्य के मर्म को संप्रेषित करने में सफल लघुकथा .... हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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