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मुक्ति--

फिर आधी रात को उनकी आँख खुल गयी , पसीने से तरबतर वो बिस्तर से उठे और गटागट एक लोटा पानी हलक में उड़ेल दिया | ये सपना उन्हें पिछले कई सालों से परेशान कर रहा था | अक्सर वो देखते कि एक हाँथ उनकी ओर बढ़ रहा है और जैसे ही वह उनके गर्दन के पास पहुँचता , घबराहट में उनकी नींद खुल जाती |
अब वो जिंदगी के आखिरी पड़ाव में थे और अब खाली समय था उनके पास | रिटायरमेंट के बाद वो और पत्नी ही रहते थे घर में , बच्चे अपने अपने जगह व्यस्त थे | पत्नी भी परेशान रहती थी उनकी इस हालत से और कई बार पूछती थी कि क्यों इस तरह उठ जाते हैं वो | लेकिन जो राज़ उन्होंने पिछले कई सालों से अपने सीने में दफ़न कर रखा था , उसे बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे |
उनके निगाहों के सामने वो सालों पुराना दृश्य घूमने लगा | काफी लम्बे सफर से लौट रहे थे और रात भी ज्यादा हो गयी थी | हल्के नशे की हालत में उनकी कार किसी से टकराई और फिर उनकी नज़र सड़क के किनारे एक घायल पड़े युवक पर पड़ी | उन्होंने अपनी कार रोकी और उतर कर उसकी ओर बढे | उसका चेहरा और शरीर खून से सना हुआ था और उसने उनकी ओर अपना हाँथ बढ़ाया | उसकी ऑंखें जिंदगी बचाने के लिए याचना कर रही थीं लेकिन फिर उनके दिमाग में पुलिस , कोर्ट कचहरी इत्यादि घूमने लगे और वो वापस मुड़ गए | कार में बैठते समय एक बार फिर देखा तो उसके हाँथ उन्ही की ओर बढे हुए थे |
पर आज उन्होंने फैसला कर लिया , कि वो पत्नी को इस सपने की वज़ह बता देंगे , शायद उन्हें मुक्ति मिल जाए |

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on January 24, 2015 at 8:38pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राहुल डांगी जी..

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:16pm
सुन्दर रचना बधाई हो
Comment by विनय कुमार on January 23, 2015 at 1:43am

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी , आप की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है | 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 11:38pm
जिंदगी के उतार , जिंदगी के चढ़ाव की भूलों , गलतियों को बहुत सालते हैं, सच है। हमारे यहां ऐसी असंख्य कहानियां हर सड़क पर घटित मिल जाएंगी। पर इसके लिए कहानी के नायक कितने दोषी हैं , यह भी विचारणीय है. पत्नी को सपने की वजह बता कर वे मुक्त हो जायेंगें , पर समस्या ज्यों - की - त्यों वहीँ रहेगी।
इसके लिए वास्तव में व्यवस्था दोषी है और उसमें परिवर्तन की जरूरत है, जिसका घोर अभाव है, सब जगह , व्यवस्था में भी , और विचार में भी।
कहानी इस ओर सोचने को विवश करती है , इसलिए बधाई आदरणीय विनय कुमार जी, सादर।
Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 11:05pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:27pm

कहानी अच्छी लगी आदरणीय विनय कुमार जी, बहुत बहुत बधाई.

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी..

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , शायद थोड़ा और बेहतर हो सकती थी |

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी..

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:06pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..

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