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ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२........डराओ मत

१२२२—१२२२—१२२२

उमंगों के चरागों को बुझाओ मत

उजाले को अँधेरों से डराओ मत

 

न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का            तगाफ़ुल= उपेक्षा

परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत

 

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत

 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत

 

सजाओ आइने दीवार में लेकिन

हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत

 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत

 

यहाँ हर आँख में नमकीन आँसू हैं

किसी को ज़ख्म दिल के तुम दिखाओ मत

 

असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव

शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत                क़ुमक़ुमा = बल्ब\लट्टू 

 

लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं

ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 9:31pm
बहुत खूब, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल, बधाई, आदर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 27, 2015 at 8:39pm

यहाँ हर आँख में नमकीन आँसू हैं

किसी को ज़ख्म दिल के तुम दिखाओ मत

 

बहुत खूब कहा है सर वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 8:04pm

क्या बात है !! आदरणीय खुर्शीद भाई , क्या शानदार गज़ल हुई है हर एक शे र जैसे नगीने ।

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत  --- इस शे र के लिये और पूरी गज़ल के लिये ढेरों बधाइयाँ ।

 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 27, 2015 at 7:58pm
उम्दा गजल कही आदरणीय
Comment by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 7:00pm

आदरणीय खुर्शीद खैरादी सर....बहुत खूब ...

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत.... शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई ! सादर

 

Comment by Shyam Narain Verma on January 27, 2015 at 12:59pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

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