बरसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली गयी .
स्टडी रिपोर्ट में गाँव, गलियां, गाय, गोबर, गेहूं, खेत, खलिहान, किसान, नदी, कुआँ इत्यादि के बारे में जिक्र के साथ एक बात प्रमुखता के साथ लिखी गयी.
“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय बागी सर, सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करे.
लघुकथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में पूर्ण रूप से सफल हुई है. एक ऐसी पीढ़ी, जो फाके वाली झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का शोध कर आये, लगभग तैयार है. अब ये उनकी अज्ञानता है या संवेदनहीनता, पता नहीं. लेकिन जो देख आये उसके परिणाम स्वरुप उपसंहार तो ऐसे ही वाक्यों से होता है-
“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”
“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”
क्या गहरा मंथन है अर्थहीन मानसिक-विकास का |धरातलीय ज्ञान से कटा छात्र ऐसे ही निष्कर्ष निकलता है |आज बड़े-बड़े अंगेजी स्कूलों में रटाने और एसाइनमेंट -प्रणाली हावी हो रही हैऔर बाज़ार रेडी-मेड मटेरियल से भरा हुआ है जो तर्क करने ,सोचने ,समझने की शक्ति समाप्त कर रही है |पता नहीं कहाँ ले जाएगा ये हमारे मानसिक-विकास की |सुंदर लघुकथा आदरणीय |
कमाल की लघुकथा कही है आ० गणेश जी
अब ये रेन वाटर हार्वेस्टिंग है तो ..पूरी रिपोर्ट तो क्या ही सार्थकता लिए होगी.... स्पष्ट है.
डिब्बा बंद मस्तिष्क ना शिक्षक खोलना चाहते हैं ना ही छात्र... जो जैसा है वैसे ही अपनी अज्ञानता में नजरअंदाज करने के रवैये के साथ मस्त.... फिर तो ऐसी रिपोर्ट्स भी सिर्फ खानापूर्ति बन कर रह जाती हैं.
आदरणीय सौरभ जी की टिप्पणी बहुत खूबी और सटीकता से आपकी लघुकथा के मर्म को उजागर करती है
आपकी पैनी निगाह और इस तरह के वाकियों को शब्दबद्ध करने के महारथ को पुनः स्थापित करती इस लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई
वास्तविकता को उजागर करती एक सार्थक लघुकथा ..आदरणीय गणेश जी बागी जी हार्दिक बधाई स्वीकारें ...सादर
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन कर रही है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, आपकी विस्तृत और समीक्षात्मक टिप्पणी लघुकथा को सार्थक कर रही है और लेखन कर्म सार्थक प्रतीत होने लगा है, बहुत बहुत आभार.
टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय कृष्णसिंह पेला जी.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भईया, आपकी टिप्पणी इस लघुकथा को सार्थक कर गयी.
आदरणीय “बागी” सर, लघुकथा को पढ़कर आनंद आ गया , सटीक मार पड़ी है, नामी कॉलेज/ छात्रों की टीम / सुदूर गाँव/ सोशलस्टडी/ और अंत में निष्कर्ष ...... झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’.... हा हा हा! सफलतम लघुकथा. इसके लिए हार्दिक बधाई ! सादर
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