व्यर्थ का अचंभा
***************
अचंभित न होइये
आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है
आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल
गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,
कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात
अगर ऐसा है तो,
इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं
कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा
फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है
कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में
लेकिन ये तय है ,
परिणाम आपके ही किसी क्लिक का है
एक और कंप्यूटर है , ईश्वरीय
कभी न खराब होने वाला
असीम अनंत शक्ति शाली प्रोसेसर , रेम और हार्डडिस्क वाला
ग़लती की रंच मात्र भी संभावना नहीं ,
कोई फाइल कभी करप्ट नहीं होती, बस
किसकी कौन सी फाइल कब और कैसे खोलना
ये ईश्वराधीन है
वर्तमान में
जीवन के पटल पर उभर आईं परिस्थितियाँ
अच्छी हों या बुरी
आपके ही किसी क्लिक का परिणाम हैं
अचंभित न होइये,
अगर बुरी है
पढ लीजिये खुली हुई फाइल
गुज़र जाने दीजिये
अनुभव बन कर इस समय को / फाइल को
ताकि वही क्लिक आप फिर न करें
दूसरी बार ,बार बार ।
****************
Comment
आदरणीय विजय भाई , आपकी सराहना ने मेरा लेखन क्र्म सार्थक कर दिया ! आपका दिल से आभारी हूँ ।
आदरणीय सुशील भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये हृदय से आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी सराहना सदा और लिखने के लिये प्रेरित करती है । उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।
बहुत खुबसूरत .._/\_आदरणीय
वर्तमान में
जीवन के पटल पर उभर आईं परिस्थितियाँ
अच्छी हों या बुरी
आपके ही किसी क्लिक का परिणाम हैं
अचंभित न होइये,
अगर बुरी है
पढ लीजिये खुली हुई फाइल
गुज़र जाने दीजिये
अनुभव बन कर इस समय को / फाइल को
ताकि वही क्लिक आप फिर न करें
दूसरी बार ,बार बार ।
वाह आदरणीय वाह … तकनीकी बदलाव को मानवीय भावों के साथ जोड़ एक शानदार दार्शनिक भाव को आपने जन्म दिया है। एक यथार्थ का सुंदर चित्रण करती इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई और आपकी लेखनी और सोच को सलाम।
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर बहुत ही सुन्दर,...... /किसकी कौन सी फाइल कब और कैसे खोलना
ये ईश्वराधीन है/.....इस सुन्दर दर्शन ,संदेशप्रद रचना पर हार्दिक बधाई ! सादर
वाह वाह वाह ... जीवन की सूचना प्रौद्योगिकीय व्याख्या... क्या बात है आदरणीय गिरिराज सर.. एक बार में पूरी कविता पढ़ गया.. फिर बार बार पढ़ता रहा. कर्म-फल के सिद्धांत को खूब सुन्दर तरीके से अभिव्यक्त किया है. रचना सीख भी दे रही है, जीवन के सभी पक्षों को अभिव्यक्त भी कर रही है और भाषा इतनी जीवंत है कि बस पाठक मुग्ध हो जाता है. बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए लिए.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online