For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" व्यर्थ का अचंभा " अतुकांत -- गिरिराज भंडारी

व्यर्थ का अचंभा

***************

अचंभित न होइये

आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है

आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल

गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,

कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात

अगर ऐसा है तो,

इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं

कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा

 

फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है

कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में

लेकिन ये तय है ,

परिणाम आपके ही किसी क्लिक का है

 

एक और कंप्यूटर है , ईश्वरीय  

कभी न खराब होने वाला

असीम अनंत शक्ति शाली प्रोसेसर , रेम और हार्डडिस्क वाला

ग़लती की रंच मात्र भी संभावना नहीं ,

कोई फाइल कभी करप्ट नहीं होती, बस  

किसकी कौन सी फाइल कब और कैसे खोलना

ये ईश्वराधीन है

 

वर्तमान में

जीवन के पटल पर उभर आईं परिस्थितियाँ

अच्छी हों या बुरी

आपके ही किसी क्लिक का परिणाम हैं

अचंभित न होइये,

अगर बुरी है   

पढ लीजिये खुली हुई फाइल

गुज़र जाने दीजिये

अनुभव बन कर इस समय को / फाइल को

ताकि वही क्लिक आप फिर न करें

दूसरी बार ,बार बार ।  

****************

Views: 741

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 7:41am

आदरणीय विजय भाई , आपकी सराहना ने मेरा लेखन क्र्म सार्थक कर दिया ! आपका दिल से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 7:40am

आदरणीय सुशील भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये  हृदय से आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 7:38am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 7:37am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी सराहना सदा और लिखने के लिये प्रेरित करती है । उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2015 at 11:47pm
वाह, कर्मों के फल का ऐसा यथार्थवादी , वैज्ञानिक चित्रण, वाह, बहुत ही सुन्दर, बहुत बहुत बधाई , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
Comment by savitamishra on February 3, 2015 at 10:55pm

बहुत खुबसूरत .._/\_आदरणीय

Comment by Sushil Sarna on February 3, 2015 at 8:55pm

वर्तमान में
जीवन के पटल पर उभर आईं परिस्थितियाँ
अच्छी हों या बुरी
आपके ही किसी क्लिक का परिणाम हैं
अचंभित न होइये,
अगर बुरी है
पढ लीजिये खुली हुई फाइल
गुज़र जाने दीजिये
अनुभव बन कर इस समय को / फाइल को
ताकि वही क्लिक आप फिर न करें
दूसरी बार ,बार बार ।

वाह आदरणीय वाह … तकनीकी बदलाव को मानवीय भावों के साथ जोड़ एक शानदार दार्शनिक भाव को आपने जन्म दिया है। एक यथार्थ का सुंदर चित्रण करती इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई और आपकी लेखनी और सोच को सलाम।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:23pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर बहुत ही सुन्दर,...... /किसकी कौन सी फाइल कब और कैसे खोलना

ये ईश्वराधीन है/.....इस सुन्दर दर्शन ,संदेशप्रद रचना पर हार्दिक बधाई ! सादर   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2015 at 6:17pm

वाह वाह वाह ... जीवन की सूचना प्रौद्योगिकीय व्याख्या... क्या बात है आदरणीय गिरिराज सर.. एक बार में पूरी कविता पढ़ गया.. फिर बार बार पढ़ता रहा. कर्म-फल के सिद्धांत को खूब सुन्दर तरीके से अभिव्यक्त किया है. रचना सीख भी दे रही है, जीवन के सभी पक्षों को अभिव्यक्त भी कर रही है और भाषा इतनी जीवंत है कि बस पाठक मुग्ध हो जाता है. बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए लिए. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service