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रक्षाबंधन (लघुकथा)

“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”

“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”

“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी मेल में भेज दी है ,प्रिंटआउट निकाल कर बाँध लेना , लव यू टू !”

“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”       

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:16am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:16am

आदरणीय इंजीo गणेश जी “बागी” सर ,रचना पर आपकी उपस्तिथि ,मार्गदर्शन के लिए आपका हृदय से आभार आपके मार्गदर्शन, स्नेह की सदैव आकांक्षा है, सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:15am

आदरणीय विनय भाई , लघुकथा पर आपकी प्रेरणास्पद प्रतिक्रया के लिये बहुत बहुत धन्यवाद  ।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:14am

आदरणीय मोहन बोगोवाल जी , आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by vandana on February 5, 2015 at 9:02pm

यांत्रिक रिश्ते और यांत्रिक भावनाएं ....बहुत मार्मिक 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 7:58pm

बहुत सुन्दर लघु कथा... रिश्तों की अहमियत आज कहाँ ? बहुत बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा पर 

Comment by Anurag Goel on February 5, 2015 at 5:41pm

वर्तमान युग की त्रासदी ही यही है की रिश्तों की गर्माहट और जरुरत मतलब की मुताबिक बदल जाती है. सुन्दर रचना 

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 11:24am

आदरणीय हरिप्रकाश सर ,बहुत सुन्दर .... आज की आपाधापी में  रिश्तों की मिठास कहीं खो गई है |सादर अभिनन्दन | 

Comment by मोहन बेगोवाल on February 4, 2015 at 6:46pm

 आज के युग की सचाई पेश कर दी, आदमी  भी वक्त  व् रिश्तों  में बंट गया है  ,तो कुछ नजदीक के रिस्ते भी छोड़ता जा  रहा है 

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 4, 2015 at 6:04pm
सब मशीनी हो गया सर जी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,वाह अच्छी प्रस्तुति खूब बधाई

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